महफ़िल Poetry (page 10)

मेरी ख़ातिर देर न करना और सफ़र करते जाना

शहज़ाद अहमद

लगे थे ग़म तुझे किस उम्र में ज़माने के

शहज़ाद अहमद

कितनी बे-नूर थी दिन भर नज़र-ए-परवाना

शहज़ाद अहमद

ख़ल्क़ ने छीन ली मुझ से मिरी तन्हाई तक

शहज़ाद अहमद

जो दिल में खटकती है कभी कह भी सकोगे

शहज़ाद अहमद

हम लोगों को अपने दिल के राज़ बताते रहते हैं

शहज़ाद अहमद

ख़ला सा कहीं है

शहराम सर्मदी

इनायत है तिरी बस एक एहसान और इतना कर

शहराम सर्मदी

मैं अपने हिस्से की तन्हाई महफ़िल से निकालूँगा

शाहिद ज़की

आज भी जिस की है उम्मीद वो कल आए हुए

शाहिद लतीफ़

मिरी नज़र कि तरह दिल परिंद ओझल है

शाहिद जमील

सजाएँ महफ़िल-ए-याराँ न शग़्ल-ए-जाम करें

शाहिद अख़्तर

मिरे बनने से क्या क्या बन रहा था

शाहीन अब्बास

दामन में आँसू मत बोना

शहाब अख़्तर

सैर की हम ने जो कल महफ़िल-ए-ख़ामोशाँ की

शाह नसीर

ख़ाल-ए-रुख़ उस ने दिखाया न दोबारा अपना

शाह नसीर

बा'द-ए-मजनूँ क्यूँ न हूँ मैं कार-फ़रमा-ए-जुनूँ

शाह नसीर

बला जाने किसी की हिज्र में इस दिल पे क्या गुज़री

शाग़िल क़ादरी

भरी महफ़िल में तन्हाई का आलम ढूँड लेता है

शफ़ीक़ ख़लिश

कली पर मुस्कुराहट आज भी मालूम होती है

शफ़ीक़ जौनपुरी

कब से इस दुनिया को सरगर्म-ए-सफ़र पाता हूँ मैं

शफ़ीक़ जौनपुरी

वक़्त-ए-तज़ईं जो दिखाए वो सफ़ा सीने को

शाद लखनवी

लुंज वो पा-ए-तलब हूँ कहीं जा ही न सकूँ

शाद लखनवी

ख़ुदा ही उस चुप की दाद देगा कि तुर्बतें रौंदे डालते हैं

शाद लखनवी

लहद में क्यूँ न जाऊँ मुँह छुपाए

शाद अज़ीमाबादी

तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ

शाद अज़ीमाबादी

क्या फ़क़त तालिब-ए-दीदार था मूसा तेरा

शाद अज़ीमाबादी

किस बुरी साअत से ख़त ले कर गया

शाद अज़ीमाबादी

वो तो आईना-नुमा था मुझ को

शबनम शकील

वहाँ भी ज़हर-ज़बाँ काम कर गया होगा

शबनम शकील

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