महफ़िल Poetry (page 12)

जिस क़दर शिकवे थे सब हर्फ़-ए-दुआ होने लगे

सरवर आलम राज़

तेरे लिए ईजाद हुआ था लफ़्ज़ जो है रा'नाई का

सरताज आलम आबिदी

लड़खड़ाता हूँ कभी ख़ुद ही सँभल जाता हूँ

सरफ़राज़ नवाज़

जो तुम कहते हो मुझ से पहले तुम आए थे महफ़िल में

सरफ़राज़ ख़ालिद

उन को देखा तो तबीअ'त में रवानी आई

सरदार सोज़

एक ही ज़िंदा बचा है ये निराला पागल

सरदार सलीम

तेरी महफ़िल में जितने ऐ सितम-गर जाने वाले हैं

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

काली काली घटा बरसती है

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

बोसा देते हो अगर तुम मुझ को दो दो सब के दो

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

ब-जुज़ साया तन-ए-लाग़र को मेरे कोई क्या समझे

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

चल ऐ हम-दम ज़रा साज़-ए-तरब की छेड़ भी सुन लें

साक़िब लखनवी

हज़ार फूल लिए मौसम-ए-बहार आए

साक़िब लखनवी

आईना-दिल दाग़-ए-तमन्ना के लिए था

समद अंसारी

हूँ मैं भी वही मेरा मुक़ाबिल भी वही है

सलीम शाहिद

यहाँ वहाँ कुछ लफ़्ज़ हैं मेरे नज़्में ग़ज़लें तेरी हैं

सलीम मुहीउद्दीन

वहाँ महफ़िल न सजाई जहाँ ख़ल्वत नहीं की

सलीम कौसर

दस्त-ए-दुआ को कासा-ए-साइल समझते हो

सलीम कौसर

याद ने आ कर यकायक पर्दा खींचा दूर तक

सलीम अहमद

उन को जल्वत की हवस महफ़िल में तन्हा कर गई

सलीम अहमद

कुछ हैं मंज़र हाल के कुछ ख़्वाब मुस्तक़बिल के हैं

सलीम अहमद

इश्क़ में जिस के ये अहवाल बना रक्खा है

सलीम अहमद

इश्क़ और इतना मोहज़्ज़ब छोड़ कर दीवाना-पन

सलीम अहमद

दीदनी है हमारी ज़ेबाई

सलीम अहमद

बजा ये रौनक़-ए-महफ़िल मगर कहाँ हैं वो लोग

सलीम अहमद

अहल-ए-दिल ने इश्क़ में चाहा था जैसा हो गया

सलीम अहमद

वो दिल से तंग आ के आज महफ़िल में हुस्न की तमकनत की ख़ातिर

सलाम मछली शहरी

शुक्रिया ऐ गर्दिश-ए-जाम-ए-शराब

सलाम मछली शहरी

मजबूरियाँ

सलाम मछली शहरी

सुब्ह-दम भी यूँ फ़सुर्दा हो गया

सलाम मछली शहरी

कभी कभी अर्ज़-ए-ग़म की ख़ातिर हम इक बहाना भी चाहते हैं

सलाम मछली शहरी

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