महफ़िल Poetry (page 14)

कोई आबाद मंज़िल हम जो वीराँ देख लेते हैं

सफ़ी लखनवी

अपनी खोई हुई तौक़ीर नुमायाँ कर दें

सईदा जहाँ मख़्फ़ी

इस एहतिमाम से परवाने पेशतर न जले

सादिक़ नसीम

ज़ुल्फ़ लहरा के फ़ज़ा पहले मोअत्तर कर दे

सदा अम्बालवी

नींद आई ही नहीं हम को न पूछो कब से

सदा अम्बालवी

मैं जिस के साथ 'ज़फ़र' उम्र भर उठा बैठा

साबिर ज़फ़र

दिन को मिस्मार हुए रात को तामीर हुए

साबिर ज़फ़र

हैरान हूँ दो आँखों से क्या देख रहा हूँ

साबिर दत्त

मुझ से कल महफ़िल में उस ने मुस्कुरा कर बात की

साबिर

ख़ूबियों को मस्ख़ कर के ऐब जैसा कर दिया

साबिर

नहीं जाने है वो हर्फ़-ए-सताइश बरमला कहना

सबिहा सबा, न्यूयार्क

रक्खे हर इक क़दम पे जो मुश्किल की आगही

सबीला इनाम सिद्दीक़ी

मैं दरिया हूँ मगर दोनों तरफ़ साहिल है तन्हाई

सबीला इनाम सिद्दीक़ी

काम आएगी मिज़ाज-ए-इश्क़ की आशुफ़्तगी

सबा अकबराबादी

कसरत-ए-जल्वा को आईना-ए-वहदत समझो

सबा अकबराबादी

हुजूम-ए-ग़म है क़ल्ब ग़म-ज़दा है

सबा अकबराबादी

सामने उन को पाया तो हम खो गए आज फिर हसरत-ए-गुफ़्तुगू रह गई

सबा अफ़ग़ानी

आब-ए-रवाँ हूँ रास्ता क्यूँ न ढूँढ लूँ

रूही कंजाही

हवा-ए-जिंदगी भी कूचा-ए-क़ातिल से आती है

रोहित सोनी ‘ताबिश’

ज़रूर पाँव में अपने हिना वो मल के चले

रियाज़ ख़ैराबादी

वो हों मुट्ठी में उन की दिल हो हम हों

रियाज़ ख़ैराबादी

उन के होते कौन देखे दीदा-ओ-दिल का बिगाड़

रियाज़ ख़ैराबादी

'रियाज़' इक चुलबुला सा दिल हो हम हों

रियाज़ ख़ैराबादी

मय रहे मीना रहे गर्दिश में पैमाना रहे

रियाज़ ख़ैराबादी

जो थे हाथ मेहंदी लगाने के क़ाबिल

रियाज़ ख़ैराबादी

अगर उन के लब पर गिला है किसी का

रियाज़ ख़ैराबादी

हंगामे से वहशत होती है तन्हाई में जी घबराए है

रिफ़अत सरोश

सफ़र इक दूसरे का एक सा है

रेनू नय्यर

सफ़र इक दूसरे का एक सा है

रेनू नय्यर

उम्र-भर इश्क़ किसी तौर न कम हो आमीन

रहमान फ़ारिस

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