लोकपाल Poetry (page 2)

तू ने महजूर कर दिया हम को

इमाम बख़्श नासिख़

चैन दुनिया में ज़मीं से ता-फ़लक दम भर नहीं

इमाम बख़्श नासिख़

मैं सो रहा था और कोई बेदार मुझ में था

हिमायत अली शाएर

क़त्अ हो कर काकुल-ए-शब-गीर आधी रह गई

हातिम अली मेहर

हर वफ़ा ना-आश्ना से भी वफ़ा करना पड़ी

हामिद इलाहाबादी

करता है क्या ये मोहतसिब-ए-संग-दिल ग़ज़ब

हैदर अली आतिश

बर्क़ को उस पर अबस गिरने की हैं तय्यारियाँ

हैदर अली आतिश

सुब्ह को आए हो निकले शाम के

हफ़ीज़ जौनपुरी

पी हम ने बहुत शराब तौबा

हफ़ीज़ जौनपुरी

मस्तों पे उँगलियाँ न उठाओ बहार में

हफ़ीज़ जालंधरी

भागते सायों के पीछे ता-ब-कै दौड़ा करें

हफ़ीज़ बनारसी

शेर से शाइरी से डरते हैं

हबीब जालिब

क्या हुआ वीराँ किया गर मोहतसिब ने मय-कदा

हबीब मूसवी

ख़ुदा करे कहीं मय-ख़ाने की तरफ़ न मुड़े

हबीब मूसवी

हुआ करे जो अँधेरा बहुत घनेरा है

ज्ञान चंद जैन

पी भी ऐ माया-ए-शबाब शराब

ग़ुलाम मौला क़लक़

ख़ुशी में भी नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ हूँ

ग़ुलाम मौला क़लक़

शोरिश-ए-ज़ंजीर बिस्मिल्लाह

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कभी कभी याद में उभरते हैं नक़्श-ए-माज़ी मिटे मिटे से

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

आज यूँ मौज-दर-मौज ग़म थम गया इस तरह ग़म-ज़दों को क़रार आ गया

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कुछ तरह रिंदों ने दी कुछ मोहतसिब भी दब गया

बेख़ुद देहलवी

ऐसा बना दिया तुझे क़ुदरत ख़ुदा की है

बेख़ुद देहलवी

अदू के ताकने को तुम इधर देखो उधर देखो

बेख़ुद देहलवी

वाइज़ ओ मोहतसिब का जमघट है

बेखुद बदायुनी

क्यूँ मैं अब क़ाबिल-ए-जफ़ा न रहा

बेखुद बदायुनी

यकसाँ लगें हैं उन को तो दैर-ओ-हरम बहम

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

कल मय-कदे की जानिब आहंग-ए-मोहतसिब है

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

तासीर जज़्ब मस्तों की हर हर ग़ज़ल में है

अरशद अली ख़ान क़लक़

नहीं चमके ये हँसने में तुम्हारे दाँत अंजुम से

अरशद अली ख़ान क़लक़

ये ग़ज़ल की अंजुमन है ज़रा एहतिमाम कर लो

अनवर मोअज़्ज़म

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