प्यार Poetry (page 53)

आग़ाज़-ए-मोहब्बत में बरसों यूँ ज़ब्त से हम ने काम लिया

हफ़ीज़ जौनपुरी

'हफ़ीज़' अपनी बोली मोहब्बत की बोली

हफ़ीज़ जालंधरी

देखा न कारोबार-ए-मोहब्बत कभी 'हफ़ीज़'

हफ़ीज़ जालंधरी

वो क़ाफ़िला आराम-तलब हो भी तो क्या हो

हफ़ीज़ जालंधरी

उभरे जो ख़ाक से वो तह-ए-ख़ाक हो गए

हफ़ीज़ जालंधरी

दिल को वीराना कहोगे मुझे मालूम न था

हफ़ीज़ जालंधरी

आ ही गया वो मुझ को लहद में उतारने

हफ़ीज़ जालंधरी

कहीं ये तर्क-ए-मोहब्बत की इब्तिदा तो नहीं

हफ़ीज़ होशियारपुरी

राज़-ए-सर-बस्ता मोहब्बत के ज़बाँ तक पहुँचे

हफ़ीज़ होशियारपुरी

नर्गिस पे तो इल्ज़ाम लगा बे-बसरी का

हफ़ीज़ होशियारपुरी

न पूछ क्यूँ मिरी आँखों में आ गए आँसू

हफ़ीज़ होशियारपुरी

मन-ओ-तू का हिजाब उठने न दे ऐ जान-ए-यकताई

हफ़ीज़ होशियारपुरी

कहाँ कहाँ न तसव्वुर ने दाम फैलाए

हफ़ीज़ होशियारपुरी

ऐसी भी क्या जल्दी प्यारे जाने मिलें फिर या न मिलें हम

हफ़ीज़ होशियारपुरी

किस मुँह से करें उन के तग़ाफ़ुल की शिकायत

हफ़ीज़ बनारसी

पैग़ाम ईद

हफ़ीज़ बनारसी

कुछ सोच के परवाना महफ़िल में जला होगा

हफ़ीज़ बनारसी

जो नज़र से बयान होती है

हफ़ीज़ बनारसी

जब तसव्वुर में कोई माह-जबीं होता है

हफ़ीज़ बनारसी

इश्क़ में हर नफ़स इबादत है

हफ़ीज़ बनारसी

हदीस-ए-तल्ख़ी-ए-अय्याम से तकलीफ़ होती है

हफ़ीज़ बनारसी

उठने को तो उट्ठा हूँ महफ़िल से तिरी लेकिन

हादी मछलीशहरी

तेज़ चलो

हबीब जालिब

जम्हूरियत

हबीब जालिब

शे'र होता है अब महीनों में

हबीब जालिब

महताब-सिफ़त लोग यहाँ ख़ाक-बसर हैं

हबीब जालिब

कम पुराना बहुत नया था फ़िराक़

हबीब जालिब

ग़ज़लें तो कही हैं कुछ हम ने उन से न कहा अहवाल तो क्या

हबीब जालिब

ग़ज़लें तो कही हैं कुछ हम ने उन से न कहा अहवाल तो क्या

हबीब जालिब

ग़ुर्बत बस अब तरीक़-ए-मोहब्बत को क़त्अ कर

हबीब मूसवी

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