प्यार Poetry (page 54)

बुतान-ए-सर्व-क़ामत की मोहब्बत में न फल पाया

हबीब मूसवी

वो यूँ शक्ल-ए-तर्ज़-ए-बयाँ खींचते हैं

हबीब मूसवी

ये कैफ़ कैफ़-ए-मोहब्बत है कोई क्या जाने

हबीब अशअर देहलवी

वो करम हो कि सितम एक तअल्लुक़ है ज़रूर

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

वो भला कैसे बताए कि ग़म-ए-हिज्र है क्या

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

हाए बे-दाद-ए-मोहब्बत कि ये ईं बर्बादी

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

वो दर्द-ए-इश्क़ जिस को हासिल-ए-ईमाँ भी कहते हैं

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

नवेद-ए-आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार भी तो नहीं

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

ख़िज़ाँ-नसीब की हसरत ब-रू-ए-कार न हो

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

दुनिया को रू-शनास-ए-हक़ीक़त न कर सके

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

और ऐ चश्म-ए-तरब बादा-ए-गुलफ़ाम अभी

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

ज़ाब्ते और ही मिस्दाक़ पे रक्खे हुए हैं

गुलज़ार बुख़ारी

आँसू भी वही कर्ब के साए भी वही हैं

गुलनार आफ़रीन

ज़िंदगी इश्क़-ओ-मोहब्बत से जवाँ होती है

ग़ुलाम नबी हकीम

ज़िंदगी इश्क़-ओ-मोहब्बत से जवाँ होती है

ग़ुलाम नबी हकीम

अब के बाज़ार में ये तुर्फ़ा तमाशा देखा

गुलाम जीलानी असग़र

मैं इक मुसाफ़ि-ए-तन्हा मिरा सफ़र तन्हा

गुहर खैराबादी

चराग़ से कभी तारों से रौशनी माँगे

गुहर खैराबादी

नहीं बचता है बीमार-ए-मोहब्बत

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

तकल्लुम जो कोई करता है फ़ानी

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

भूला है बा'द-ए-मर्ग मुझे दोस्त याँ तलक

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

शेर जब खुलता है खुलते हैं मआनी क्या क्या

गोविन्द गुलशन

शब-ताब

गोपाल मित्तल

ज़बान रक़्स में है और झूमता हूँ मैं

गोपाल मित्तल

तेरी आँखों में जो नशा है पज़ीराई का

गोपाल मित्तल

स्वाँग अब तर्क-ए-मोहब्बत का रचाया जाए

गोपाल मित्तल

अगरचे बे-हिसी-ए-दिल मुझे गवारा नहीं

गोपाल मित्तल

हर घड़ी बीमार हो कर रह गई

गोपाल कृष्णा शफ़क़

ये भी इक रंग है शायद मिरी महरूमी का

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

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