ये भी इक रंग है शायद मिरी महरूमी का
कोई हँस दे तो मोहब्बत का गुमाँ होता है
Jaun Eliya
Rahat Indori
Wasi Shah
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1930) Peoples Rate This
फिर वही कहने लगे तू मिरे घर आया था
जिस को इस फ़स्ल में होना है बराबर का शरीक
हर साल की आख़िरी शामों में दो चार वरक़ उड़ जाते हैं
हिज्र के तपते मौसम में भी दिल उन से वाबस्ता है
रात का हर इक मंज़र रंजिशों से बोझल था
''अटलांटिक सिटी''
वो लोग मुतमइन हैं कि पत्थर हैं उन के पास
वफ़ा के शहर में अब लोग झूट बोलते हैं
फिर वो दरिया है किनारों से छलकने वाला
याद अश्कों में बहा दी हम ने
कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला
जिन की दर्द-भरी बातों से एक ज़माना राम हुआ