वफ़ा के शहर में अब लोग झूट बोलते हैं
तू आ रहा है मगर सच को मानता है तो आ
Ahmad Faraz
Gulzar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Rahat Indori
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1028) Peoples Rate This
अपने अशआर को रुस्वा सर-ए-बाज़ार करूँ
बन से फ़सील-ए-शहर तक कोई सवार भी नहीं
बयाबाँ दूर तक मैं ने सजाया था
सायों की ज़द में आ गईं सारी ग़ुलाम-गर्दिशें
वो लोग मुतमइन हैं कि पत्थर हैं उन के पास
जज़्बों को किया ज़ंजीर तो क्या तारों को किया तस्ख़ीर तो क्या
याद अश्कों में बहा दी हम ने
फिर वही कहने लगे तू मिरे घर आया था
हम तो वहाँ पहुँच नहीं सकते तमाम उम्र
कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला
दुआ और बद-दुआ के दरमियाँ