जिस को इस फ़स्ल में होना है बराबर का शरीक
मेरे एहसास में तन्हाइयाँ क्यूँ बोता है
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कुछ बे-तरतीब सितारों को पलकों ने किया तस्ख़ीर तो क्या
सोचा है तुम्हारी आँखों से अब मैं उन को मिलवा ही दूँ
नज़र नज़र में अदा-ए-जमाल रखते थे
हर बच्चा आँखें खोलते ही करता है सवाल मोहब्बत का
कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला
''अटलांटिक सिटी''
कहते हैं इन शाख़ों पर फल फूल भी आते थे
कहफ़-उल-क़हत
हम ने तो बे-शुमार बहाने बनाए हैं
मोहब्बत की गवाही अपने होने की ख़बर ले जा
यूँ तो सदा-ए-ज़ख़्म बड़ी दूर तक गई
सोते हैं वो आईना ले कर ख़्वाबों में बाल बनाते हैं