नज़र Poetry (page 22)

चराग़ की ओट में है मेहराब पर सितारा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिरे पहलू से जो निकले वो मिरी जाँ हो कर

ग़ुलाम भीक नैरंग

किस तरह वाक़िफ़ हों हाल-ए-आशिक़-ए-जाँ-बाज़ से

ग़ुलाम भीक नैरंग

तिरा मय-ख़्वार ख़ुश-आग़ाज़-ओ-ख़ुश-अंजाम है साक़ी

ग़ुबार भट्टी

मिरे मुद्दआ-ए-उल्फ़त का पयाम बन के आई

ग़ुबार भट्टी

अजब इंक़लाब का दौर है कि हर एक सम्त फ़िशार है

ग़ुबार भट्टी

क़ल्ब-ओ-नज़र के सिलसिले मेरी निगाह में रहे

गाैस मथरावी

नाकामी-ए-निगाह है बर्क़-ए-नज़ारा-सोज़

ग़ालिब

करने गए थे उस से तग़ाफ़ुल का हम गिला

ग़ालिब

बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह

ग़ालिब

बहुत दिनों में तग़ाफ़ुल ने तेरे पैदा की

ग़ालिब

ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है

ग़ालिब

वाँ पहुँच कर जो ग़श आता पए-हम है हम को

ग़ालिब

तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो

ग़ालिब

रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए

ग़ालिब

फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है

ग़ालिब

पा-ब-दामन हो रहा हूँ बस-कि मैं सहरा-नवर्द

ग़ालिब

न पूछ नुस्ख़ा-ए-मरहम जराहत-ए-दिल का

ग़ालिब

मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए

ग़ालिब

मिलती है ख़ू-ए-यार से नार इल्तिहाब में

ग़ालिब

कोह के हों बार-ए-ख़ातिर गर सदा हो जाइए

ग़ालिब

ख़मोशियों में तमाशा अदा निकलती है

ग़ालिब

करे है बादा तिरे लब से कस्ब-ए-रंग-ए-फ़रोग़

ग़ालिब

जब तक दहान-ए-ज़ख़्म न पैदा करे कोई

ग़ालिब

हुस्न-ए-मह गरचे ब-हंगाम-ए-कमाल अच्छा है

ग़ालिब

हम पर जफ़ा से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ नहीं

ग़ालिब

है किस क़दर हलाक-ए-फ़रेब-ए-वफ़ा-ए-गुल

ग़ालिब

गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा का

ग़ालिब

ग़ाफ़िल ब-वहम-ए-नाज़ ख़ुद-आरा है वर्ना याँ

ग़ालिब

गर न अंदोह-ए-शब-ए-फ़ुर्क़त बयाँ हो जाएगा

ग़ालिब

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