उद्धार Poetry (page 2)

रौशनी तेज़ करो

शमीम करहानी

शम्अ' पर शम्अ' जलाती हुई साथ आती है

शमीम करहानी

सफ़र नसीब अगर हो तो ये बदन क्यूँ है

शमीम हनफ़ी

तुम में तो कुछ भी वाहियात नहीं

शमीम अब्बास

ग़ुबार-ए-दर्द में राह-ए-नजात ऐसा ही

शहराम सर्मदी

जो हो वरा-ए-ज़ात वो जीना ही और है

शानुल हक़ हक़्क़ी

आधा कमरा

सारा शगुफ़्ता

ये ख़्वाब और भी देखेंगे रात बाक़ी है

सलीम अहमद

सितम तू करता है लेकिन दुआ भी देता है

सज्जाद सय्यद

तुझे मैं मिलूँ तो कहाँ मिलूँ मिरा तुझ से रब्त मुहाल है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

मग़रूर थे अपनी ज़ात पर हम

सैफ़ुद्दीन सैफ़

शफ़्फ़ाफ़ रंग

साहिल अहमद

'साग़र' बहुत गुज़ारी गुनाहों में ज़िंदगी

साग़र ख़य्यामी

ज़रूरत-ए-रिश्ता

साग़र ख़य्यामी

उल्टी गंगा

साग़र ख़य्यामी

अब जश्न-ए-अश्क ऐ शब-ए-हिज्राँ करेंगे हम

साग़र ख़य्यामी

ये महर ओ मह बे-चराग़ ऐसे कि राख बन कर बिखर रहे हैं

साबिर वसीम

कब तक नजात पाएँगे वहम ओ यक़ीं से हम

सबा अकबराबादी

तो मिल भी जाए तो फिर भी तुझे तलाश करूँ

रूही कंजाही

दवाम के दयार में

रियाज़ लतीफ़

गुज़र चुके हैं बदन से आगे नजात का ख़्वाब हम हुए हैं

रियाज़ लतीफ़

ज़िद हमारी दुआ से होती है

रियाज़ ख़ैराबादी

किसी भी तौर तबीअ'त कहाँ सँभलने की

रियाज़ मजीद

दामन से अपने झाड़ के सहरा-ए-ग़म की धूल

रज़ा अश्क

कहने को सब फ़साना-ए-ग़ैब-ओ-शुहूद था

रविश सिद्दीक़ी

क्या देखते हैं आप झिजक कर शराब में

रौनक़ टोंकवी

क़ातिल सभी थे चल दिए मक़्तल से रातों रात

रउफ़ ख़लिश

देता है मुझ को चर्ख़-ए-कुहन बार बार दाग़

रंजूर अज़ीमाबादी

मुझे कैफ़-ए-हिज्र अज़ीज़ है तू ज़र-ए-विसाल समेट ले

राम रियाज़

और कुछ तेज़ चलीं अब के हवाएँ शायद

रईस सिद्दीक़ी

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