निशां Poetry (page 6)

ग़म की तहज़ीब अज़िय्यत का क़रीना सीखें

शाहिद माहुली

जलती बुझती हुई शम्ओं का धुआँ रहता है

शाहिद कलीम

हर मर्ग-ए-आरज़ू का निशाँ देर तक रहा

शाहिद इश्क़ी

ए'तिराफ़

शाहिद अख़्तर

ज़रूरत क्या है

शाहीन मुफ़्ती

हयात में भी अजल का समाँ दिखाई दे

शहाब जाफ़री

बे-सर-ओ-सामाँ कुछ अपनी तब्अ से हैं घर में हम

शहाब जाफ़री

उधर अब्र ले चश्म-ए-नम को चला

शाह नसीर

न क्यूँ कि अश्क-ए-मुसलसल हो रहनुमा दिल का

शाह नसीर

लोग हैं मुंतज़िर-ए-नूर-ए-सहर मुद्दत से

शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा

इन बला की आँधियों में इक शजर बाक़ी रहे

शफ़ीक़ सलीमी

सुना हम को आते जो अंदर से बाहर

शाद लखनवी

जफ़ा-शिआ'र भी हो कोई मेहरबाँ भी रहे

शाद बिलगवी

अब इंतिहा का तिरे ज़िक्र में असर आया

शाद अज़ीमाबादी

फूल और सितारा

शब्बीर शाहिद

नग़्मा यूँ साज़ में तड़पा मिरी जाँ हो जैसे

शानुल हक़ हक़्क़ी

जहान-ए-दिल में हुए इंक़लाब और ही कुछ

शानुल हक़ हक़्क़ी

बदल के भेस वो चेहरा कहाँ कहाँ न मिला

सय्यद एहतिशाम हुसैन

जो भी तख़्त पे आ कर बैठा उस को यज़्दाँ मान लिया

सय्यद नसीर शाह

हर्फ़-ए-आग़ाज़-ए-सदा-ए-कुन-फ़काँ था और मैं

सय्यद नसीर शाह

बूँद अश्कों से अगर लुत्फ़-ए-रवानी माँगे

सययद मोहम्म्द अब्दुल ग़फ़ूर शहबाज़

सदमा हर-चंद तिरे जौर से जाँ पर आया

मोहम्मद रफ़ी सौदा

ने ग़रज़ कुफ़्र से रखते हैं न इस्लाम से काम

मोहम्मद रफ़ी सौदा

दिल ले के हमारा जो कोई तालिब-ए-जाँ है

मोहम्मद रफ़ी सौदा

शिकोह-ए-आब में गुम थे जिहत-निशाँ मेरे

सत्तार सय्यद

इक राज़-ए-दिलरुबा को बयाँ होना है अभी

सत्तार सय्यद

देखा जो उस तरफ़ तो बदन पर नज़र गई

सरवत हुसैन

पोस्टर

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