निशां Poetry (page 4)

तुम न घबराओ मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर को देख कर

सुदर्शन फ़ाकिर

दर्द के दाइमी रिश्तों से लिपट जाते हैं

सुबहान असद

वफ़ाओं के इरादे वुसअ'त-ए-मंज़िल में रहते हैं

सोज़ बरेलवी

शौक़ रातों को है दरपय कि तपाँ हो जाऊँ

सिराजुद्दीन ज़फ़र

शौक़ रातों को है दर पे कि तपाँ हो जाऊँ

सिराजुद्दीन ज़फ़र

बग़ैर-ए-साग़र-ओ-यार-ए-जवाँ नहीं गुज़रे

सिराजुद्दीन ज़फ़र

बग़ैर साग़र ओ यार-ए-जवाँ नहीं गुज़रे

सिराजुद्दीन ज़फ़र

दिल से अब तो नक़्श-ए-याद-ए-रफ़्तगाँ भी मिट गया

सिराज मुनीर

क़द तिरा सर्व-ए-रवाँ था मुझे मालूम न था

सिराज औरंगाबादी

फ़स्ल-ए-गुल का ग़म दिल-ए-नाशाद पर बाक़ी रहा

सिराज औरंगाबादी

तू हर्फ़-ए-आख़िरी मिरा क़िस्सा तमाम है

सिदरा सहर इमरान

जिस को जाना था कल तक ख़ुदा की तरह

शोला हस्पानवी

ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ से आ गई होंटों पे जाँ तलक

शोला अलीगढ़ी

हाए क्या हाल कर लिया दिल का

शमशाद शाद

दाग़ जो अब तक अयाँ हैं वो बता कैसे मिटें

शिवकुमार बिलग्रामी

क्या ख़बर थी कोई रुस्वा-ए-जहाँ हो जाएगा

शेर सिंह नाज़ देहलवी

नहीं सबात बुलंदी-ए-इज्ज़-ओ-शाँ के लिए

ज़ौक़

कब हक़-परस्त ज़ाहिद-ए-जन्नत-परस्त है

ज़ौक़

अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे

ज़ौक़

क्या क्या न तेरे सदमे से बाद-ए-ख़िज़ाँ गिरा

शैख़ अली बख़्श बीमार

कहूँ मैं क्या कि क्या दर्द-ए-निहाँ है

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

बे-नंग-ओ-नाम

शाज़ तमकनत

अजनबी

शाज़ तमकनत

है शैख़ ओ बरहमन पर ग़ालिब गुमाँ हमारा

शौक़ बहराइची

तराना-ए-उर्दू

शातिर हकीमी

एक कैंसर के मरीज़ की बड़-बड़

शारिक़ कैफ़ी

ग़ज़ल वही है जो हो शाख़-ए-गुल-निशाँ की तरह

शारिक़ ईरायानी

पर्दा-ए-रुख़ क्या उठा हर-सू उजाले हो गए

शारिब मौरान्वी

रात शहर और उस के बच्चे

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

सुर्ख़ सीधा सख़्त नीला दूर ऊँचा आसमाँ

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

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