निशां Poetry (page 8)
कल हम आईने में रुख़ की झुर्रियाँ देखा किए
सफ़ी लखनवी
उर्दू-ए-मुअ'ल्ला
सफ़ी लखनवी
जाना जाना जल्दी क्या है इन बातों को जाने दो
सफ़ी लखनवी
तराना-ए-क़ौमी
सफ़ीर काकोरवी
क्यूँ भटकती सहरा में घर भी इक ख़राबा था
सादिया रोशन सिद्दीक़ी
रश्क-ए-महताब जहाँ-ताब था हर क़र्या-ए-जाँ
सादिक़ नसीम
अज़मत-ए-फ़िक्र के अंदाज़ अयाँ भी होंगे
सादिक़ नसीम
भूल जाना था तो फिर अपना बनाया क्यूँ था
सबा अफ़ग़ानी
रू-ए-ज़मीं नहीं कि सर-ए-आसमाँ नहीं
रोहित सोनी ‘ताबिश’
दवाम के दयार में
रियाज़ लतीफ़
न तारे अफ़्शाँ न कहकशाँ है नमूना हँसती हुई जबीं का
रियाज़ ख़ैराबादी
फ़रियाद-ए-जुनूँ और है बुलबुल की फ़ुग़ाँ और
रियाज़ ख़ैराबादी
दिल ढूँढती है निगह किसी की
रियाज़ ख़ैराबादी
लाला-रूयों से कब फ़राग़ रहा
रिन्द लखनवी
कहाँ पे लाई है मेरी ख़ुदी कहाँ से मुझे
रिफ़अतुल क़ासमी
दौलत-ए-हर्फ़-ओ-बयाँ साथ लिए फिरते हैं
रिफ़अत सरोश
चाँद वीरान है सदियों से मिरे दिल की तरह
रिफ़अत सरोश
सत्ह-बीं थे सब, रहे बाहर की काई देखते
रियाज़ मजीद
मकान-ए-दिल से जो उठता था वो धुआँ भी गया
रियाज़ मजीद
क्यूँ तिरे साथ रहीं उम्र बसर होने तक
रहमान फ़ारिस
मकीं और भी हैं मकाँ और भी हैं
रज़ा जौनपुरी
टुक तू महमिल का निशाँ दे जल्द ऐ सूरत ज़रा
रज़ा अज़ीमाबादी
तबीब देख के मुझ को दवा न कुछ बोला
रज़ा अज़ीमाबादी
लड़खड़ाना भी है तकमील-ए-सफ़र की तम्हीद
रविश सिद्दीक़ी
तुझ पे खुल जाए कि क्या मेहर को शबनम से मिला
रविश सिद्दीक़ी
हवस-ए-ख़लवत-ए-ख़ुर्शीद-ओ-निशाँ और सही
रविश सिद्दीक़ी
कितनी सदियों से लम्हों का लोबान जलता रहा
रउफ़ ख़लिश
ममनूँ ही रहा उस बुत-ए-काफ़िर की जफ़ा का
रासिख़ अज़ीमाबादी
वो जो ख़ुद अपने बदन को साएबाँ करता नहीं
राशिद मुफ़्ती
तेरे हाथों जो सर-अफ़राज़ हुए
राशिद मुफ़्ती
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