कल हम आईने में रुख़ की झुर्रियाँ देखा किए
कारवान-ए-उम्र-ए-रफ़्ता का निशाँ देखा किए
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Wasi Shah
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Gulzar
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जनाज़ा रोक कर मेरा वो इस अंदाज़ से बोले
उर्दू-ए-मुअ'ल्ला
बनावट हो तो ऐसी हो कि जिस से सादगी टपके
तड़प के रात बसर की जो इक मुहिम सर की
तालिब-ए-दीद पे आँच आए ये मंज़ूर नहीं
ग़ज़ल उस ने छेड़ी मुझे साज़ देना
दर्द-ए-आग़ाज़-ए-मोहब्बत का अब अंजाम नहीं
पैग़ाम ज़िंदगी ने दिया मौत का मुझे
वो आलम है कि मुँह फेरे हुए आलम निकलता है
जाना जाना जल्दी क्या है इन बातों को जाने दो
दें भी जवाब-ए-ख़त कि न दें क्या ख़बर मुझे