पैग़ाम ज़िंदगी ने दिया मौत का मुझे
मरने के इंतिज़ार में जीना पड़ा मुझे
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ख़त्म हो जाते जो हुस्न ओ इश्क़ के नाज़ ओ अदा
दर्द-ए-आग़ाज़-ए-मोहब्बत का अब अंजाम नहीं
उर्दू-ए-मुअ'ल्ला
दें भी जवाब-ए-ख़त कि न दें क्या ख़बर मुझे
वो आलम है कि मुँह फेरे हुए आलम निकलता है
देखे बग़ैर हाल ये है इज़्तिराब का
कोई आबाद मंज़िल हम जो वीराँ देख लेते हैं
जाना जाना जल्दी क्या है इन बातों को जाने दो
तड़प के रात बसर की जो इक मुहिम सर की