ख़त्म हो जाते जो हुस्न ओ इश्क़ के नाज़ ओ अदा
शायरी भी ख़त्म हो जाती नबुव्वत की तरह
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देखे बग़ैर हाल ये है इज़्तिराब का
जनाज़ा रोक कर मेरा वो इस अंदाज़ से बोले
कोई आबाद मंज़िल हम जो वीराँ देख लेते हैं
बनावट हो तो ऐसी हो कि जिस से सादगी टपके
उर्दू-ए-मुअ'ल्ला
दर्द-ए-आग़ाज़-ए-मोहब्बत का अब अंजाम नहीं
मिरी नाश के सिरहाने वो खड़े ये कह रहे हैं
तालिब-ए-दीद पे आँच आए ये मंज़ूर नहीं
पैग़ाम ज़िंदगी ने दिया मौत का मुझे
कल हम आईने में रुख़ की झुर्रियाँ देखा किए
जाना जाना जल्दी क्या है इन बातों को जाने दो