उम्र Poetry (page 39)

बे-चेहरगी-ए-उम्र-ए-ख़जालत भी बहुत है

ग़ज़नफ़र हाशमी

ख़ला के दश्त से अब रिश्ता अपना क़त्अ करूँ

ग़ज़नफ़र

हुजूम-ए-दर्द मिला इम्तिहान ऐसा था

ग़यास अंजुम

कोई हमराह नहीं राह की मुश्किल के सिवा

ग़नी एजाज़

उस के कूचे में गया मैं सो फिर आया न गया

ग़मगीन देहलवी

तमाम उम्र उसे चाहना न था मुमकिन

ग़ालिब अयाज़

कभी गुमान कभी ए'तिबार बन के रहा

ग़ालिब अयाज़

ता फिर न इंतिज़ार में नींद आए उम्र भर

ग़ालिब

रौ में है रख़्श-ए-उम्र कहाँ देखिए थमे

ग़ालिब

हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़

ग़ालिब

बे-इश्क़ उम्र कट नहीं सकती है और याँ

ग़ालिब

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक

ग़ालिब

वुसअत-ए-सई-ए-करम देख कि सर-ता-सर-ए-ख़ाक

ग़ालिब

उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किए

ग़ालिब

तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं

ग़ालिब

सद जल्वा रू-ब-रू है जो मिज़्गाँ उठाइए

ग़ालिब

रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इज़्तिराब है

ग़ालिब

पा-ब-दामन हो रहा हूँ बस-कि मैं सहरा-नवर्द

ग़ालिब

नवेद-ए-अम्न है बेदाद-ए-दोस्त जाँ के लिए

ग़ालिब

न हुई गर मिरे मरने से तसल्ली न सही

ग़ालिब

मिलती है ख़ू-ए-यार से नार इल्तिहाब में

ग़ालिब

करे है बादा तिरे लब से कस्ब-ए-रंग-ए-फ़रोग़

ग़ालिब

कल के लिए कर आज न ख़िस्सत शराब में

ग़ालिब

जिस ज़ख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की

ग़ालिब

जिस जा नसीम शाना-कश-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार है

ग़ालिब

जब तक दहान-ए-ज़ख़्म न पैदा करे कोई

ग़ालिब

जब ब-तक़रीब-ए-सफ़र यार ने महमिल बाँधा

ग़ालिब

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले

ग़ालिब

हासिल से हाथ धो बैठ ऐ आरज़ू-ख़िरामी

ग़ालिब

हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़

ग़ालिब

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