पास Poetry (page 21)

कुछ इस अदा से मोहब्बत-शनास होना है

राहुल झा

निकलो हिसार-ए-ज़ात से तो कुछ सुझाई दे

रहमत क़रनी

यास-ओ-हिरास-ओ-जौर-ओ-जफ़ा से अलग-थलग

राही फ़िदाई

साक़ी भले फटकने न दे पास जाम के

राहील फ़ारूक़

कभी किसी से न हम ने कोई गिला रक्खा

इरफ़ान सत्तार

ग़मों में कुछ कमी या कुछ इज़ाफ़ा कर रहे हैं

इरफ़ान सत्तार

वो कैसे लोग होते हैं जिन्हें हम दोस्त कहते हैं

इरफ़ान अहमद मीर

कैसे बनाऊँ हाथ पर तस्वीर ख़्वाब की

इरम ज़ेहरा

उस आइने में देखना हैरत भी आएगी

इक़बाल साजिद

सरसब्ज़ दिल की कोई भी ख़्वाहिश नहीं हुई

इक़बाल साजिद

प्यासे के पास रात समुंदर पड़ा हुआ

इक़बाल साजिद

दुनिया ने ज़र के वास्ते क्या कुछ नहीं किया

इक़बाल साजिद

कैफ़-ए-हयात तेरे सिवा कुछ नहीं रहा

इक़बाल कैफ़ी

आँखों को इंतिशार है दिल बे-क़रार है

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

ज़ब्त भी चाहिए ज़र्फ़ भी चाहिए और मोहतात पास-ए-वफ़ा चाहिए

इक़बाल अज़ीम

वो यूँ मिला कि ब-ज़ाहिर ख़फ़ा ख़फ़ा सा लगा

इक़बाल अज़ीम

तुम ग़ैरों से हँस हँस के मुलाक़ात करो हो

इक़बाल अज़ीम

मुझे अपने ज़ब्त पे नाज़ था सर-ए-बज़्म रात ये क्या हुआ

इक़बाल अज़ीम

जो लोग लौट के ख़ुद मेरे पास आए हैं

इक़बाल अशहर कुरेशी

ये ख़ौफ़ कम है मुझे और चमको जब तक हो

इक़बाल अशहर कुरेशी

लोग न जाने कैसी कैसी बातें करते हैं

इंतिख़ाब सय्यद

शोर से बच कर सहमा सहमा बैठा है चुप-चाप

इंतिख़ाब सय्यद

ये किस से चाँदनी में हम ब-ज़ेर-ए-आसमाँ लिपटे

इंशा अल्लाह ख़ान

वो जो शख़्स अपने ही ताड़ में सो छुपा है दिल ही की आड़ में

इंशा अल्लाह ख़ान

टुक आँख मिलाते ही किया काम हमारा

इंशा अल्लाह ख़ान

तोडूँगा ख़ुम-ए-बादा-ए-अंगूर की गर्दन

इंशा अल्लाह ख़ान

कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं

इंशा अल्लाह ख़ान

बंदगी हम ने तो जी से अपनी ठानी आप की

इंशा अल्लाह ख़ान

बात के साथ ही मौजूद है टाल एक न एक

इंशा अल्लाह ख़ान

अमरद हुए हैं तेरे ख़रीदार चार पाँच

इंशा अल्लाह ख़ान

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