पास Poetry (page 22)
कभी मुड़ के फिर इसी राह पर न तो आए तुम न तो आए हम
इन्दिरा वर्मा
रहती है सब के पास तन्हाई
इंद्र सराज़ी
आँख ने धोका खाया था या साया था
इनाम नदीम
फिर आस-पास से दिल हो चला है मेरा उदास
इम्तियाज़ अली अर्शी
यूँही अक्सर मुझे समझा बुझा कर लौट जाती है
इम्तियाज़ अहमद
सूदी बेगम
इमरान शमशाद
दुनिया भर के दुख का हासिल
इमरान शमशाद
इन मकानों से बहुत दूर बहुत दूर कहीं
इमरान शमशाद
कुछ एहतिमाम न था शाम-ए-ग़म मनाने को
इमरान आमी
अपने दर से जो उठाते हैं हमें
इम्दाद इमाम असर
सैर उस सब्ज़ा-ए-आरिज़ की है दुश्वार बहुत
इमदाद अली बहर
दाग़ बैआ'ना हुस्न का न हुआ
इमदाद अली बहर
यारों की हम से दिल-शिकनी हो सके कहाँ
इमाम बख़्श नासिख़
सौ क़िस्सों से बेहतर है कहानी मिरे दिल की
इमाम बख़्श नासिख़
दिल में पोशीदा तप-ए-इश्क़-ए-बुताँ रखते हैं
इमाम बख़्श नासिख़
प्रीत-नगर की रीत नहीं है ऐसा ओछा-पन बाबा
इलियास इश्क़ी
'इश्क़ी'-साहिब लिखना है तो कोई नई तहरीर लिखो
इलियास इश्क़ी
दूर दूर तक सन्नाटा है कोई नहीं है पास
इफ़्तिख़ार क़ैसर
जिला-वतन हूँ मिरा घर पुकारता है मुझे
इफ़्तिख़ार नसीम
हाथ लहराता रहा वो बैठ कर खिड़की के साथ
इफ़्तिख़ार नसीम
वफ़ा की ख़ैर मनाता हूँ बेवफ़ाई में भी
इफ़्तिख़ार आरिफ़
समझ रहे हैं मगर बोलने का यारा नहीं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
वो बहुत दूर है मगर मिरे पास
इदरीस बाबर
मतला ग़ज़ल का ग़ैर ज़रूरी क्या क्यूँ कब का हिस्सा है
इदरीस बाबर
हवादिसात ज़रूरी हैं ज़िंदगी के लिए
इबरत मछलीशहरी
बे-ज़मीरों के कभी झाँसे में मैं आता नहीं
इबरत बहराईची
शीशे का आदमी हूँ मिरी ज़िंदगी है क्या
इब्राहीम अश्क
रात भर तन्हा रहा दिन भर अकेला मैं ही था
इब्राहीम अश्क
मैं कब रहीन-ए-रेग-ए-बयाबान-ए-यास था
इब्राहीम अश्क
कुछ भी तो अपने पास नहीं जुज़-मता-ए-दिल
इब्न-ए-सफ़ी
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