पास Poetry (page 24)

घटेगा तेरे कूचे में वक़ार आहिस्ता आहिस्ता

हसरत मोहानी

और तो पास मिरे हिज्र में क्या रक्खा है

हसरत मोहानी

भरे सफ़र में घड़ी-भर का आश्ना न मिला

हसनैन जाफ़री

फ़ैसला हिज्र का मंज़ूर भी हो सकता है

हाशिम रज़ा जलालपुरी

जीना मुझे कठिन हो कि मरना मुहाल हो

हसन सोज़

मैं अपने आप से ग़ाफ़िल न यूँ हुआ होता

हसन रिज़वी

कोई मौसम भी हम को रास नहीं

हसन रिज़वी

सूखे हुए दरख़्त के पत्तों को देखना

हसन निज़ामी

एक दरिया पार कर के आ गया हूँ उस के पास

हसन नईम

उसी ख़ुश-नवा में हैं सब हुनर मुझे पहले था न क़यास भी

हसन नईम

मैं जनम जनम का अनीस हूँ किसी तौर दिल में बसा मुझे

हसन नईम

ख़ुर्शीद की निगाह से शबनम को आस क्या

हसन नईम

ख़याल-ओ-ख़्वाब में कब तक ये गुफ़्तुगू होगी

हसन नईम

जंगलों की ये मुहिम है रख़्त-ए-जाँ कोई नहीं

हसन नईम

इश्क़ को पास-ए-वफ़ा आज भी करते देखा

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

हर ज़ख़्म-ए-दिल से अंजुमन-आराई माँग लो

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

तुम भी हो ख़ंजर-ए-खुशाब भी है

हसन बरेलवी

आईना तुम्हारे नक़्श-ए-पा का

हसन बरेलवी

ये रात काश इसी दिलकशी से ढलती रहे

हसन अख्तर जलील

ये रात काश इसी दिलकशी से ढलती रहे

हसन अख्तर जलील

निभाओ अब उसे जो वज़्अ भी बना ली है

हसन अख्तर जलील

आरज़ू की हमा-हामी और मैं

हसन अख्तर जलील

ऐ फ़ैरी-टेल

हसन अकबर कमाल

दुनिया कहाँ थी पास-ए-विरासत के ज़िम्न में

हसन आबिदी

हम तीरगी में शम्अ जलाए हुए तो हैं

हसन आबिदी

हम तीरगी में शम्अ' जलाए हुए तो हैं

हसन आबिद

क्या कहिए

हारिस ख़लीक़

इश्क़ की तक़्वीम में

हारिस ख़लीक़

नेमतों को देखता है और हँस देता है दिल

हरी चंद अख़्तर

जम्अ हैं सारे मुसाफ़िर ना-ख़ुदा-ए-दिल के पास

हरी चंद अख़्तर

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