नेमतों को देखता है और हँस देता है दिल
महव-ए-हैरत हूँ कि आख़िर क्या है मेरे दिल के पास
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जिस ज़मीं पर तिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा होता है
जम्अ हैं सारे मुसाफ़िर ना-ख़ुदा-ए-दिल के पास
उमीदों से दिल-ए-बर्बाद को आबाद करता हूँ
मिलेगी शैख़ को जन्नत, हमें दोज़ख़ अता होगा
शैख़ ओ पंडित धर्म और इस्लाम की बातें करें
मुझ को देखा फूट के रोया
यही होता है कि तदबीर को नाकाम करे
रहे दो दो फ़रिश्ते साथ अब इंसाफ़ क्या होगा
मिलेगी शैख़ को जन्नत हमें दोज़ख़ अता होगी
शबाब आया किसी बुत पर फ़िदा होने का वक़्त आया
कलियों का तबस्सुम हो, कि तुम हो कि सबा हो