यही होता है कि तदबीर को नाकाम करे
और फ़रमाइए तक़दीर से क्या होता है
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नेमतों को देखता है और हँस देता है दिल
जम्अ हैं सारे मुसाफ़िर ना-ख़ुदा-ए-दिल के पास
मिलेगी शैख़ को जन्नत हमें दोज़ख़ अता होगी
मिलेगी शैख़ को जन्नत, हमें दोज़ख़ अता होगा
उमीदों से दिल-ए-बर्बाद को आबाद करता हूँ
अगर तेरी ख़ुशी है तेरे बंदों की मसर्रत में
शबाब आया किसी बुत पर फ़िदा होने का वक़्त आया
हमें भी आ पड़ा है दोस्तों से काम कुछ यानी
जो ठोकर ही नहीं खाते वो सब कुछ हैं मगर वाइज़
ग़ुरूर-ज़ब्त से आह-ओ-फ़ुग़ाँ तक बात आ पहुँची
भरोसा किस क़दर है तुझ को 'अख़्तर' उस की रहमत पर
मुझ को देखा फूट के रोया