उन्हें देखा तो ज़ाहिद ने कहा ईमान की ये है
कि अब इंसान को सज्दा रवा होने का वक़्त आया
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हमें भी आ पड़ा है दोस्तों से काम कुछ यानी
मुझ को देखा फूट के रोया
जम्अ हैं सारे मुसाफ़िर ना-ख़ुदा-ए-दिल के पास
शैख़ ओ पंडित धर्म और इस्लाम की बातें करें
जो ठोकर ही नहीं खाते वो सब कुछ हैं मगर वाइज़
कलियों का तबस्सुम हो, कि तुम हो कि सबा हो
जहाँ तुझ को बिठा कर पूजते हैं पूजने वाले
शबाब आया किसी बुत पर फ़िदा होने का वक़्त आया
सुना कर हाल क़िस्मत आज़मा कर लौट आए हैं