जीना मुझे कठिन हो कि मरना मुहाल हो

जीना मुझे कठिन हो कि मरना मुहाल हो

एहसास-ओ-आगही का मगर क्यूँ मलाल हो

हर रोज़ सोचता हूँ नए तौर से तुम्हें

मेरे लिए तुम एक अनोखा सवाल हो

था दर्द तो दिलों में समाया हुआ था मैं

हूँ पास ही तो अब किसे मेरा ख़याल हो

राहत ग़मों की आँच हो ग़म राहतों की रूह

ये ज़ीस्त हो तो मेरे लिए क्यूँ वबाल हो

वो कहकशाँ की सम्त न देखे तो क्या करे

जिस को तिरी गली से गुज़रना मुहाल हो

गिरते हुए दरख़्त की बाँहों से दूर भाग

आग़ोश-ए-आफ़्ताब में जो कुछ भी हाल हो

सदियों से कुछ वज़ाहतें यूँ कर रहा है ज़ेहन

जैसे कि आस-पास की हर शय सवाल हो

इस घर की छत का कोई भरोसा नहीं है 'सोज़'

इन बारिशों में देखिए क्या अपना हाल हो

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