पास Poetry (page 5)

तिरा ही रूप नज़र आए जा-ब-जा मुझ को

वज़ीर आग़ा

सिखा दिया है ज़माने ने बे-बसर रहना

वज़ीर आग़ा

सहर ने आ कर मुझे सुलाया तो मैं ने जाना

वज़ीर आग़ा

मंज़र था राख और तबीअत उदास थी

वज़ीर आग़ा

लाज़िम कहाँ कि सारा जहाँ ख़ुश-लिबास हो

वज़ीर आग़ा

चराग़ घर का हो महफ़िल का हो कि मंदिर का

वसीम बरेलवी

खुल के मिलने का सलीक़ा आप को आता नहीं

वसीम बरेलवी

कहाँ सवाब कहाँ क्या अज़ाब होता है

वसीम बरेलवी

हवेलियों में मिरी तर्बियत नहीं होती

वसीम बरेलवी

अंधेरा ज़ेहन का सम्त-ए-सफ़र जब खोने लगता है

वसीम बरेलवी

ज़ियादा सोचने वाले तुझे पता नहीं है

वक़ार ख़ान

वो मेरा यार है पर मेरी मानता नहीं है

वक़ार ख़ान

देख पगली न दल लगा मिरे साथ

वक़ार ख़ान

तुम होश में जब आए तो आफ़त ही बन के आए

वामिक़ जौनपुरी

जीने का लुत्फ़ कुछ तो उठाओ नशे में आओ

वामिक़ जौनपुरी

तुम गाओ अपने राग को उस पास वाइ'ज़ो

वलीउल्लाह मुहिब

मैं हूँ और साक़ी हो और हों रास ओ चुप ये वो बहम

वलीउल्लाह मुहिब

शब-ए-फ़िराक़ न काटे कटे है क्या कीजे

वलीउल्लाह मुहिब

मेरी ख़बर न लेना ऐ यार है तअ'ज्जुब

वलीउल्लाह मुहिब

मैं जीते-जी तलक रहूँ मरहून आप का

वलीउल्लाह मुहिब

ऐ हम-दमाँ भुलाओ न तुम याद-ए-रफ़्तगाँ

वलीउल्लाह मुहिब

दिलों में रहिए जहाँ के वले ख़ुदा के ढब

वली उज़लत

सजन टुक नाज़ सूँ मुझ पास आ आहिस्ता आहिस्ता

वली मोहम्मद वली

यूँ तो हँसते हुए लड़कों को भी ग़म होता है

वाली आसी

तुझ से बिछड़ के यूँ तो बहुत जी उदास है

वाली आसी

बुझा भी जाए कोई आ के आँधियों की तरह

वकील अख़्तर

ज़ोहरा सुहैल शम्स ख़ुर बद्र बहा तू कौन है

वाजिद अली शाह अख़्तर

ग़ुंचा-ए-दिल खिले जो चाहो तुम

वाजिद अली शाह अख़्तर

अल्लाह ऐ बुतो हमें दिखलाए लखनऊ

वाजिद अली शाह अख़्तर

मोहब्बत के तआ'क़ुब में थकन से चूर होने तक

वजीह सानी

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