चित्रा Poetry (page 10)

परछाइयाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

पलकों पर अपनी कौन मुझे अब सजाएगा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

तू है मअ'नी पर्दा-ए-अल्फ़ाज़ से बाहर तो आ

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

मुझे मंज़ूर काग़ज़ पर नहीं पत्थर पे लिख देना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

मुद्दतों के बाद फिर कुंज-ए-हिरा रौशन हुआ

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

अच्छा हुआ मैं वक़्त के मेहवर से कट गया

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

बे-कैफ़ कट रही थी मुसलसल ये ज़िंदगी

फ़व्वाद अहमद

उस की गली में ज़र्फ़ से बढ़ कर मिला मुझे

फ़व्वाद अहमद

क्यूँ मसाफ़त में न आए याद अपना घर मुझे

फ़ौक़ लुधियानवी

दर्द के चेहरे बदल जाते हैं क्यूँ

फ़ारूक़ शमीम

अपनी आँखों के हिसारों से निकल कर देखना

फ़ारूक़ मुज़्तर

सब्ज़ मौसम की रिफ़ाक़त उस का कारोबार है

फ़ारूक़ अंजुम

अब धूप मुक़द्दर हुई छप्पर न मिलेगा

फ़ारूक़ अंजुम

हम एक फ़िक्र के पैकर हैं इक ख़याल के फूल

फ़ारिग़ बुख़ारी

वो रौशनी है कहाँ जिस के बाद साया नहीं

फ़ारिग़ बुख़ारी

देख कर उस हसीन पैकर को

फ़ारिग़ बुख़ारी

जो तुझे पैकर-ए-सद-नाज़-ओ-अदा कहते हैं

फ़रहत नदीम हुमायूँ

तमाम पैकर-ए-बदसूरती है मर्द की ज़ात

फ़रहत एहसास

मैं अपने रू-ए-हक़ीक़त को खो नहीं सकता

फ़रहत एहसास

हर तबस्सुम को चमन में गिर्या-सामाँ देख कर

फ़ानी बदायुनी

ख़याल-ओ-ख़्वाब को परवाज़ देता रहता हूँ

फ़ैय्याज़ रश्क़

शब-गर्दों के लिए इक नज़्म

फ़हीम शनास काज़मी

हुस्न अल्फ़ाज़ के पैकर में अगर आ सकता

फ़हीम शनास काज़मी

नद्दी नद्दी रन पड़ते हैं जब से नाव उतारी है

एज़ाज़ अफ़ज़ल

रौशनी को तीरगी का क़हर बन कर ले गया

एजाज़ अासिफ़

बज़्म-ए-तन्हाई में अक्स-ए-शो'ला-पैकर था कोई

एहतराम इस्लाम

अहमक़ों की कांफ्रेंस

दिलावर फ़िगार

न वो ताएरों का जमघट न वो शाख़-ए-आशियाना

दानिश फ़राही

ज़िंदगी कर गई तूफ़ाँ के हवाले मुझ को

दानिश अलीगढ़ी

बुतान-ए-माहवश उजड़ी हुई मंज़िल में रहते हैं

दाग़ देहलवी

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