चित्रा Poetry (page 3)

आज दिस्ता है हाल कुछ का कुछ

वली मोहम्मद वली

मैं जब छोटा सा था काग़ज़ पे ये मंज़र बनाता था

वाली आसी

सहराओं में भी कोई हमराज़ गुलों का है

वाजिद सहरी

किरनों से तराशा हुआ इक नूर का पैकर

वहीद अख़्तर

मावरा

वहीद अख़्तर

सहराओं में दरिया भी सफ़र भूल गया है

वहीद अख़्तर

जिस को माना था ख़ुदा ख़ाक का पैकर निकला

वहीद अख़्तर

तन्हाई मुझे देखती है

वहीद अहमद

तिरी जब नींद का दफ़्तर खुला था

विशाल खुल्लर

जी में है इक दिन झूम कर उस शोख़ को सज्दा करूँ

वारिस किरमानी

शहीद भगत-सिंह

तिलोकचंद महरूम

नूर-जहाँ का मज़ार

तिलोकचंद महरूम

काश इक शब के लिए ख़ुद को मयस्सर हो जाएँ

तौसीफ़ तबस्सुम

फ़क़ीरों का चलन यूँ जिस्म के अंदर महकता है

ताैफ़ीक़ साग़र

जलना हो तो मुझ से जल

तन्हा तिम्मापुरी

हर अश्क तिरी याद का नक़्श-ए-कफ़-ए-पा है

तख़्त सिंह

उसे भी पर्दा-ए-तहज़ीब को गिराना है

ताहिर अदीम

हर एक रस्ता-ए-पायाब से निकलना है

ताहिर अदीम

बंद-ए-ग़म मुश्किल से मुश्किल-तर खुला

ताबिश देहलवी

अजीब शोख़ी-ए-दुनिया में जी रहा हूँ मैं

सय्यद तम्जीद हैदर तम्जीद

ये शबनम फूल तारे चाँदनी में अक्स किस का है

सय्यद शकील दस्नवी

बदल गए हो

सय्यद मुबारक शाह

यादश-ब-ख़ैर साया-फ़गन घर ही और था

सय्यद मज़हर जमील

इश्वा क्यूँ दिल-रुबा नहीं होता

सय्यद हामिद

कहीं शो'ला कहीं शबनम, कहीं ख़ुशबू दिल पर

सय्यद अमीन अशरफ़

मेरे ख़ुश-आइंद-मुस्तक़बिल का पैग़म्बर भी तू

सुलतान रशक

जो नज़र आता नहीं दीवार में दर और है

सुलतान रशक

अजब इंसान हूँ ख़ुश-फ़हमियों के घर में रहता हूँ

सुलतान रशक

आइनों में अक्स बिन कर जिन के पैकर आ गए

सुलतान निज़ामी

दस्तार-ए-एहतियात बचा कर न आएगा

सुल्तान अख़्तर

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