फूल Poetry (page 5)
तमाम रंग जहाँ इल्तिजा के रक्खे थे
ज़फ़र मुरादाबादी
निगाह-ए-हुस्न-ए-मुजस्सम अदा को छूते ही
ज़फ़र मुरादाबादी
बढ़े कुछ और किसी इल्तिजा से कम न हुए
ज़फ़र मुरादाबादी
दिल-ओ-निगाह को वीरान कर दिया मैं ने
ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र
वही मिरे ख़स-ओ-ख़ाशाक से निकलता है
ज़फ़र इक़बाल
रफ़्ता रफ़्ता लग चुके थे हम भी दीवारों के साथ
ज़फ़र इक़बाल
न कोई ज़ख़्म लगा है न कोई दाग़ पड़ा है
ज़फ़र इक़बाल
मिला तो मंज़िल-ए-जाँ में उतारने न दिया
ज़फ़र इक़बाल
मैं भी शरीक-ए-मर्ग हूँ मर मेरे सामने
ज़फ़र इक़बाल
लहर की तरह किनारे से उछल जाना है
ज़फ़र इक़बाल
इसे मंज़ूर नहीं छोड़ झगड़ता क्या है
ज़फ़र इक़बाल
है और बात बहुत मेरी बात से आगे
ज़फ़र इक़बाल
दिन पर सोच सुलगती है या कभी रात के बारे में
ज़फ़र इक़बाल
चमकती वुसअतों में जो गुल-ए-सहरा खिला है
ज़फ़र इक़बाल
पल पल जीने की ख़्वाहिश में कर्ब-ए-शाम-ओ-सहर माँगा
ज़फ़र गोरखपुरी
धूप है क्या और साया क्या है अब मालूम हुआ
ज़फ़र गोरखपुरी
शो'ले से चटकते हैं हर साँस में ख़ुशबू के
ज़फ़र गौरी
बात जब है कि हर इक फूल को यकसाँ समझो
ज़फ़र अनवर
सर में सौदा भी वही कूचा-ए-क़ातिल भी वही
ज़फ़र अनवर
इन की नज़रों में न बन जाए तमाशा चेहरा
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
बदन से रूह तलक हम लहू लहू हुए हैं
ज़फ़र अज्मी
वादी-ए-नील
यूसुफ़ ज़फ़र
तन्हाई में अक्सर यही महसूस हुआ है
यज़दानी जालंधरी
सहन-ए-चमन में हर-सू पत्थर
यज़दानी जालंधरी
मिला है तपता सहरा देखने को
यज़दानी जालंधरी
जहाँ कुछ लोग दीवाने बने हैं
यज़दानी जालंधरी
तुम्हारे फूल ताज़ा हैं
यासमीन हामिद
मुझे आगही का निशाँ समझ के मिटाओ मत
यासमीन हामिद
यूँ बाग़ कोई हम ने उजड़ता नहीं देखा
यशपाल गुप्ता
वो कौन से ख़तरे हैं जो गुलशन में नहीं हैं
याक़ूब उस्मानी
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