फूल Poetry (page 4)

किसी की देन है लेकिन मिरी ज़रूरत है

ज़ीशान साहिल

कम रौशन इक ख़्वाब आईना इक पीला मुरझाया फूल

ज़ेब ग़ौरी

ज़ख़्म पुराने फूल सभी बासी हो जाएँगे

ज़ेब ग़ौरी

ठहरा वही नायाब कि दामन में नहीं था

ज़ेब ग़ौरी

मुराद-ए-शिकवा नहीं लुत्फ़-ए-गुफ़्तुगू के सिवा

ज़ेब ग़ौरी

इक पीली चमकीली चिड़िया काली आँख नशीली सी

ज़ेब ग़ौरी

एहसास का क़िस्सा है सुनाना तो पड़ेगा

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

शिकवा नहीं दुनिया के सनम-हा-ए-गिराँ का

ज़की काकोरवी

कितने ही फूल चुन लिए मैं ने

ज़की काकोरवी

मुझ तक निगाह आई जो वापस पलट गई

ज़करिय़ा शाज़

अफ़्साना-ए-हयात बनी फूल बन गई

ज़ाहीदा कमाल

जम्हूरियत

ज़ाहिद मसूद

तुम जा चुकी हो

ज़ाहिद इमरोज़

थूका हुआ आदमी

ज़ाहिद इमरोज़

इज़हार का मतरूक रास्ता

ज़ाहिद इमरोज़

एक अवामी नज़्म

ज़ाहिद इमरोज़

क़सम उस बदन की

ज़ाहिद हसन

नज़्म

ज़ाहिद डार

मकीन ही अजीब हैं

ज़हीर सिद्दीक़ी

सीरत न हो तो आरिज़-ओ-रुख़्सार सब ग़लत

ज़हीर काश्मीरी

ये कारोबार-ए-चमन इस ने जब सँभाला है

ज़हीर काश्मीरी

परवाना जल के साहब-ए-किरदार बन गया

ज़हीर काश्मीरी

लौह-ए-मज़ार देख के जी दंग रह गया

ज़हीर काश्मीरी

हर आदमी को ख़्वाब दिखाना मुहाल है

ज़हीर ग़ाज़ीपुरी

रखा है बज़्म में उस ने चराग़ कर के मुझे

ज़फ़र सहबाई

रखा है बज़्म में उस ने चराग़ कर के मुझे

ज़फ़र सहबाई

मैं तुम्हें फूल कहूँ तुम मुझे ख़ुश्बू देना

ज़फ़र सहबाई

कभी कभी कोई चेहरा ये काम करता है

ज़फ़र सहबाई

तमाम फूल महकने लगे हैं खिल खिल कर

ज़फ़र मुरादाबादी

तमाम फूल महकने लगे हैं खिल खिल कर

ज़फ़र मुरादाबादी

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