फूल Poetry (page 6)

रू-ब-रू बुत के दुआ की भूल हो जाए तो फिर

याक़ूब तसव्वुर

हर एक गाम पे इक बुत बनाना चाहा है

याक़ूब तसव्वुर

ख़ुद पे इल्ज़ाम क्यूँ धरो बाबा

याक़ूब राही

कोई सूरत से गर सफ़ा हो

वज़ीर अली सबा लखनवी

तुम जो आते हो

वज़ीर आग़ा

वो दिन गए कि छुप के सर-ए-बाम आएँगे

वज़ीर आग़ा

सिखा दिया है ज़माने ने बे-बसर रहना

वज़ीर आग़ा

सफ़ेद फूल मिले शाख़-ए-सीम-बर के मुझे

वज़ीर आग़ा

ख़ुद से हुआ जुदा तो मिला मर्तबा तुझे

वज़ीर आग़ा

धूप के साथ गया साथ निभाने वाला

वज़ीर आग़ा

बादल छटे तो रात का हर ज़ख़्म वा हुआ

वज़ीर आग़ा

आँखों में चुभ गईं तिरी यादों की किर्चियाँ

वसी शाह

बाज़ औक़ात फ़राग़त में इक ऐसा लम्हा आता है

वसीम ताशिफ़

फूल अपने वस्फ़ सुनते हैं उस ख़ुश-नसीब से

वसीम ख़ैराबादी

फूल तो फूल हैं आँखों से घिरे रहते हैं

वसीम बरेलवी

तहरीर से वर्ना मिरी क्या हो नहीं सकता

वसीम बरेलवी

मुझे बुझा दे मिरा दौर मुख़्तसर कर दे

वसीम बरेलवी

कितना दुश्वार था दुनिया ये हुनर आना भी

वसीम बरेलवी

वो ज़िम्मेदारी कितनी ख़ुशी से निभाई थी

वक़ार ख़ान

वो निगाह मिल के निगाह से ब-अदा-ए-ख़ास झिझक गई

वक़ार बिजनोरी

बर्क़ सर-ए-शाख़-सार देखिए कब तक रहे

वामिक़ जौनपुरी

सिगरटें चाय धुआँ रात गए तक बहसें

वाली आसी

यूँ तो हँसते हुए लड़कों को भी ग़म होता है

वाली आसी

अपनी ना-कर्दा-गुनाही की सज़ा हो जैसे

वकील अख़्तर

नादान होशियार बने जिन के रूप से

वाजिद सहरी

बेचते क्या हो मियाँ आन के बाज़ार के बीच

वाजिद अमीर

कौन ये रौशनी को समझाए

वजद चुगताई

आरियों की पहली आमद हिन्दोस्तान में

वहीदुद्दीन सलीम

सितम है दिल के धड़कने को भी क़रार कहें

वहीदा नसीम

खंडर आसेब और फूल

वहीद अख़्तर

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