रात Poetry (page 101)

इक धन को एक धन से अलग कर लूँ और गाऊँ

अफ़ज़ाल नवेद

जब इक सराब में प्यासों को प्यास उतारती है

अफ़ज़ल ख़ान

क्या मुसीबत है कि हर दिन की मशक़्क़त के एवज़

अफ़ज़ल गौहर राव

नींद आई न खुला रात का बिस्तर मुझ से

अफ़ज़ल गौहर राव

यादों के नशेमन को जलाया तो नहीं है

अफ़ज़ल इलाहाबादी

किताब-ए-ख़ाक पढ़ी ज़लज़ले की रात उस ने

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

जंगल के पास एक औरत

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

सहाब-ए-सब्ज़ न ताऊस-ए-नीलमीं लाया

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

मैं ख़ाक में मिले हुए गुलाब देखता रहा

अफ़ज़ाल फ़िरदौस

ग़म का मौसम बीत गया सो रोना क्या

अफ़ज़ाल फ़िरदौस

तलाश-ए-क़ाफ़िया में उम्र सब गुज़ारी है

आफ़ताब शम्सी

सभी बिछड़ गए मुझ से गुज़रते पल की तरह

आफ़ताब शम्सी

जू-ए-रवाँ हूँ ठहरा समुंदर नहीं हूँ मैं

आफ़ताब शम्सी

देर तक रात अँधेरे में जो मैं ने देखा

आफ़ताब शम्सी

घर ग़ैर के जो यार मिरा रात से गया

आफ़ताब शाह आलम सानी

घर ग़ैर के जो यार मिरा रात से गया

आफ़ताब शाह आलम सानी

देखो तो किस अदा से रुख़ पर हैं डाली ज़ुल्फ़ें

आफ़ताब शाह आलम सानी

क्या रात के आशोब में वो ख़ुद से लड़ा था

आफ़ताब इक़बाल शमीम

वो इत्र-ए-ख़ाक अब कहाँ पानी की बास में

आफ़ताब इक़बाल शमीम

नस्लें जो अँधेरे के महाज़ों पे लड़ी हैं

आफ़ताब इक़बाल शमीम

क्या ख़बर मेरे ही सीने में पड़ी सोती हो

आफ़ताब हुसैन

अज़ाब-ए-बर्क़-ओ-बाराँ था अँधेरी रात थी

आफ़ताब हुसैन

किसी नज़र ने मुझे जाम पर लगाया हुआ है

आफ़ताब हुसैन

कमी रखता हूँ अपने काम की तकमील में

आफ़ताब हुसैन

हर फूल है हवाओं के रुख़ पर खिला हुआ

आफ़ताब हुसैन

कहूँ जो कर्ब फ़क़त कर्ब-ए-ज़ात समझोगे

आफ़ताब आरिफ़

असर देखा दुआ जब रात भर की

अफ़सर मेरठी

ग़म-ए-हयात के पेश-ओ-अक़ब नहीं पढ़ता

अफ़सर माहपुरी

शम्स मादूम है तारों में ज़िया है तो सही

अफ़रोज़ आलम

जगा जुनूँ को ज़रा नक़्शा-ए-मुक़द्दर खींच

अफ़रोज़ आलम

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