कारण Poetry (page 15)

हम न बुत-ख़ाने में ने मस्जिद-ए-वीराँ में रहे

बहराम जी

क्यूँकि हम दुनिया में आए कुछ सबब खुलता नहीं

ज़फ़र

ख़्वाह कर इंसाफ़ ज़ालिम ख़्वाह कर बेदाद तू

ज़फ़र

हम ये तो नहीं कहते कि ग़म कह नहीं सकते

ज़फ़र

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी

ज़फ़र

मुझ को नहीं मालूम कि वो कौन है क्या है

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

बे-ख़ुदा होने के डर में बे-सबब रोता रहा

अज़रा परवीन

वुसअत-ए-चश्म को अंदोह-ए-बसारत लिक्खा

अज़्म बहज़ाद

मिरा सवाल है ऐ क़ातिलान-ए-शब तुम से

अज़ीज़ नबील

मैं नींद के ऐवान में हैरान था कल शब

अज़ीज़ नबील

काश सुनते वो पुर-असर बातें

अज़ीज़ लखनवी

सदियों में जा के बनता है आख़िर मिज़ाज-ए-दहर

अज़ीज़ हामिद मदनी

ज़ंजीर-ए-पा से आहन-ए-शमशीर है तलब

अज़ीज़ हामिद मदनी

सँभल न पाए तो तक़्सीर-ए-वाक़ई भी नहीं

अज़ीज़ हामिद मदनी

बैठो जी का बोझ उतारें दोनों वक़्त यहीं मिलते हैं

अज़ीज़ हामिद मदनी

शहर गुम-सुम रास्ते सुनसान घर ख़ामोश हैं

अज़हर नक़वी

अफ़्सुर्दगी-ए-दर्द-ए-फ़राक़त है सहर तक

अज़हर नक़वी

वो मेरा यार था मुझ को न ये ख़याल आया

अज़हर इनायती

क्या क्या नवाह-ए-चश्म की रानाइयाँ गईं

अज़हर इनायती

गुज़रे हुए लम्हात को अब ढूँड रहा हूँ

अज़हर हाश्मी

उस लब की ख़ामुशी के सबब टूटता हूँ मैं

अज़हर फ़राग़

सुरूर-ए-इश्क़ की मस्ती कहाँ है सब के लिए

अज़ीम कुरेशी

किस से पूछें रात-भर अपने भटकने का सबब

आज़ाद गुलाटी

लम्हा लम्हा इक नई सई-ए-बक़ा करती हुई

आज़ाद गुलाटी

आने वाले हादसों के ख़ौफ़ से सहमे हुए

आज़ाद गुलाटी

न जिस का कोई सहारा हो वो किधर जाए

औलाद अली रिज़वी

वो बात थी तो कई दूसरे सबब भी थे

अतीक़ुल्लाह

फ़रार के लिए जब रास्ता नहीं होगा

अतीक़ुल्लाह

मैं पूछ लेता हूँ यारों से रत-जगों का सबब

अतहर नासिक

यही बहुत है कि अहबाब पूछ लेते हैं

अतहर नासिक

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