कारण Poetry (page 8)

जान प्यारी थी मगर जान से बे-ज़ारी थी

साक़ी फ़ारुक़ी

हमला-आवर कोई अक़ब से है

साक़ी फ़ारुक़ी

गई नहीं तिरे ज़ुल्म-ओ-सितम की ख़ू अब तक

संजय मिश्रा शौक़

आना ये हिचकियों का मुझे बे-सबब नहीं

सनाउल्लाह फ़िराक़

इक उम्र की देर

समीना राजा

ख़्वाबों के आसरे पे बहुत दिन जिए हो तुम

सलमान अख़्तर

झूटी उम्मीद की उँगली को पकड़ना छोड़ो

सलमान अख़्तर

सालिम यक़ीन-ए-अज़्मत-ए-सेहर-ए-ख़ुदा न तोड़

सलीम शुजाअ अंसारी

हवा की ज़द में पत्ते की तरह था

सलीम शहज़ाद

जुरअत-ए-इज़हार का उक़्दा यहाँ कैसे खुले

सलीम शाहिद

मैं जानता हूँ मकीनों की ख़ामुशी का सबब

सलीम कौसर

अभी जो गर्दिश-ए-अय्याम से मिला हूँ मैं

सलीम कौसर

नींद से पहले

सलीम अहमद

इस आँख में ख़्वाब-ए-नाज़ हो जा

सलीम अहमद

लफ़्ज़ का कितना तक़द्दुस है ये कब जानते हैं

सज्जाद बाबर

गाँधी

साहिर होशियारपुरी

धूप थी साया उठा कर रख दिया

साहिल अहमद

थपकियाँ दे के तिरे ग़म को सुलाया हम ने

साहिबा शहरयार

न दोस्ती से रहे और न दुश्मनी से रहे

सहर अंसारी

दिल्ली की बस

साग़र ख़य्यामी

अलाउद्दीन का तरबूज़

साग़र ख़य्यामी

दीदा-ओ-दिल मिरी सरकार उठा लाए हैं

सफ़दर सलीम सियाल

बे-सबब ठीक नहीं घर से निकल कर जाना

सईद आरिफ़ी

खुलता है यूँ हवा का दरीचा समझ लिया

सईद अहमद

पूछें तिरे ज़ुल्म का सबब हम

सबा अकबराबादी

उड़ा सकता नहीं कोई मिरे अंदाज़-ए-शेवन को

साइल देहलवी

हँसी की बात कि उस ने वहाँ बुला के मुझे

सादुल्लाह शाह

रंग पर कल था अभी लाला-ए-गुलशन कैसा

रियाज़ ख़ैराबादी

न अंगिया न कुर्ती है जानी तुम्हारी

रिन्द लखनवी

चढ़ी तेरे बीमार-ए-फ़ुर्क़त को तब है

रिन्द लखनवी

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