सदा Poetry (page 23)

छोड़ कर बार-ए-सदा वो बे-सदा हो जाएगा

हकीम मंज़ूर

लफ़्ज़ तेरी याद के सब बे-सदा कर आए हैं

हैदर क़ुरैशी

किस की सदा फ़ज़ाओं में गूँजी है चार-सू

हैदर अली जाफ़री

अस्र-ए-जदीद आया बड़ी धूम-धाम से

हैदर अली जाफ़री

या-अली कह कर बुत-ए-पिंदार तोड़ा चाहिए

हैदर अली आतिश

उन्नाब-ए-लब का अपने मज़ा कुछ न पूछिए

हैदर अली आतिश

मिरे दिल को शौक़-ए-फ़ुग़ाँ नहीं मिरे लब तक आती दुआ नहीं

हैदर अली आतिश

ग़म नहीं गो ऐ फ़लक रुत्बा है मुझ को ख़ार का

हैदर अली आतिश

ऐसी वहशत नहीं दिल को कि सँभल जाऊँगा

हैदर अली आतिश

है वज्ह-ए-सुकून-ए-दिल-ए-आशुफ़्ता-नवा भी

हाफ़िज़ लुधियानवी

जैसे वीराने से टकरा के पलटती है सदा

हफ़ीज़ जालंधरी

तौबा-नामा

हफ़ीज़ जालंधरी

कृष्ण कन्हैया

हफ़ीज़ जालंधरी

अभी तो मैं जवान हूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

आशिक़ सा बद-नसीब कोई दूसरा न हो

हफ़ीज़ जालंधरी

रौशनी सी कभी कभी दिल में

हफ़ीज़ होशियारपुरी

क्या जुर्म हमारा है बता क्यूँ नहीं देते

हफ़ीज़ बनारसी

तुम अज़ीज़ और तुम्हारा ग़म भी अज़ीज़

हादी मछलीशहरी

माँ

हबीब जालिब

फिर दिल से आ रही है सदा उस गली में चल

हबीब जालिब

न डगमगाए कभी हम वफ़ा के रस्ते में

हबीब जालिब

कराहते हुए इंसान की सदा हम हैं

हबीब जालिब

कैसे कहें कि याद-ए-यार रात जा चुकी बहुत

हबीब जालिब

ख़ुद पे वो फ़ख़्र-कुनाँ कैसा है

हबाब हाश्मी

तिरी तलब ने फ़लक पे सब के सफ़र का अंजाम लिख दिया है

गुलज़ार बुख़ारी

कितनी सदियाँ ना-रसी की इंतिहा में खो गईं

गुलज़ार बुख़ारी

आईने का मुँह भी हैरत से खुला रह जाएगा

गुलज़ार बुख़ारी

सिद्धार्थ की एक रात

गुलज़ार

गर्म लाशें गिरीं फ़सीलों से

गुलज़ार

हम सर-ए-राह-ए-वफ़ा उस को सदा क्या देते

गुलनार आफ़रीन

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