सदा Poetry (page 24)

याद करने का तुम्हें कोई इरादा भी न था

गुलनार आफ़रीन

न साथ देगा कोई राह आश्ना मेरा

गुलनार आफ़रीन

शहर-ए-जाँ की फ़सीलों से बाहर

गुलाम जीलानी असग़र

जफ़ा-ए-दिल-शिकन

ग़ुलाम दस्तगीर मुबीन

तारीकियों में अपनी ज़िया छोड़ जाऊँगा

गुहर खैराबादी

मैं इक मुसाफ़ि-ए-तन्हा मिरा सफ़र तन्हा

गुहर खैराबादी

उल्फ़त का दर्द-ए-ग़म का परस्तार कौन है

गोविन्द गुलशन

मेरे लब तक जो न आई वो दुआ कैसी थी

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

ये जहाँ-नवर्द की दास्ताँ ये फ़साना डोलते साए का

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

याद अश्कों में बहा दी हम ने

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ये सच है मेरी सदा ने रौशन किए हैं मेहराब पर सितारे

ग़ुलाम हुसैन साजिद

सिसक रही हैं थकी हवाएँ लिपट के ऊँचे सनोबरों से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

ख़ुदा-ए-बर्तर ने आसमाँ को ज़मीन पर मेहरबाँ किया है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

एक घर अपने लिए तय्यार करना है मुझे

ग़ुलाम हुसैन साजिद

ज़ीस्त का ख़ाली कटोरा आप ही भर जाएगा

ग़ुलाम हुसैन अयाज़

फ़सील-ए-जिस्म की ऊँचाई से उतर जाएँ

ग़ुलाम हुसैन अयाज़

दास्तान-ए-दर्द-ए-दिल अहल-ए-वफ़ा कहने लगे

ग़ुलाम हुसैन अयाज़

अजीब शख़्स है पहले मुझे हँसाता है

ग़ज़नफ़र

जुनूँ में देर से ख़ुद को पुकारता हूँ मैं

ग़नी एजाज़

अल्फ़ाज़-ए-बे-सदा का इम्कान आइने में

ग़ालिब इरफ़ान

दिल ही तो है सियासत-ए-दरबाँ से डर गया

ग़ालिब

उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किए

ग़ालिब

लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले

ग़ालिब

कोह के हों बार-ए-ख़ातिर गर सदा हो जाइए

ग़ालिब

ख़मोशियों में तमाशा अदा निकलती है

ग़ालिब

कल के लिए कर आज न ख़िस्सत शराब में

ग़ालिब

कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया

ग़ालिब

हम से खुल जाओ ब-वक़्त-ए-मय-परस्ती एक दिन

ग़ालिब

हवस को है नशात-ए-कार क्या क्या

ग़ालिब

है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे

ग़ालिब

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