सागर Poetry (page 8)

दश्त में घास का मंज़र भी मुझे चाहिए है

सुलेमान ख़ुमार

ख़िज़ाँ की आज़माइश हो गया हूँ

सुहैल अख़्तर

मेरे अंदर

सुबोध लाल साक़ी

इन्द्र-धनुष बन जाएँ

सुबोध लाल साक़ी

ज़ब्त कर ग़म को कि जीने का हुनर आएगा

सुभाष पाठक ज़िया

मुस्कुरा कर आशिक़ों पर मेहरबानी कीजिए

सिराज औरंगाबादी

क्या बला का है नशा इश्क़ के पैमाने में

सिराज औरंगाबादी

फ़स्ल-ए-गुल का ग़म दिल-ए-नाशाद पर बाक़ी रहा

सिराज औरंगाबादी

वो सर्द धूप रेत समुंदर कहाँ गया

सिदरा सहर इमरान

एक बेचैन समुंदर है मिरे जिस्म में क़ैद

सिद्दीक़ मुजीबी

बिखरती टूटती शब का सितारा रख लिया मैं ने

सिद्दीक़ मुजीबी

आग देखूँ कभी जलता हुआ बिस्तर देखूँ

सिद्दीक़ मुजीबी

दुख

सिद्दीक़ कलीम

झोंका नफ़स का मौजा-ए-सरसर लगा मुझे

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

जब ध्यान में वो चाँद सा पैकर उतर गया

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

आ रही थी बंद कलियों के चटकने की सदा

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

शहर सहरा है घर बयाबाँ है

सिद्दीक़ शाहिद

तुम्हारे नाम कर बैठे दिल-ओ-जाँ की ख़ुशी साहब

शुमाइला बहज़ाद

छोड़िए बाक़ी भी क्या रक्खा है उन के क़हर में

शुजा ख़ावर

बहता है कोई ग़म का समुंदर मिरे अंदर

शोज़ेब काशिर

अब के बरस हूँ जितना तन्हा

शोज़ेब काशिर

जाने किस किस की तवज्जोह का तमाशा देखा

शोहरत बुख़ारी

इक उम्र फ़साने ग़म-ए-जानाँ के गढ़े हैं

शोहरत बुख़ारी

अपनों से मुरव्वत का तक़ाज़ा नहीं करते

शोहरत बुख़ारी

अब्र का टुकड़ा कोई बाला-ए-बाम आता हुआ

शोएब निज़ाम

हवा भी गर्म है छाए हैं सुर्ख़ बादल क्यूँ

शिफ़ा कजगावन्वी

आसमाँ तुझ से किनारा कहीं करना है मुझे

शहज़ाद रज़ा लम्स

सुख़न किया जो ख़मोशी से शायरी जागी

शहपर रसूल

शिकन शिकन तिरी यादें हैं मेरे बिस्तर की

शाज़ तमकनत

ख़्वाब ऐसा भी नज़र आया है अक्सर मुझ को

शारिक़ जमाल

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