सहर Poetry (page 40)

न रूह-ए-मज़हब न क़ल्ब-ए-आरिफ़ न शाइराना ज़बान बाक़ी

अकबर इलाहाबादी

सिखा सकी न जो आदाब-ए-मय वो ख़ू क्या थी

अकबर अली खान अर्शी जादह

याद-ए-फ़िराक-ए-यार तिरा शुक्रिया बहुत

अजमल अजमली

हर उजाला नई सहर तो नहीं

अजमल अजमली

हर-सू जहाँ में शाम ओ सहर ढूँडते हैं हम

आजिज़ मातवी

दर्द-ए-मुसलसल से आहों में पैदा वो तासीर हुई

आजिज़ मातवी

लगा के धड़कन में आग मेरी ब-रंग-ए-रक़्स-ए-शरर गया वो

अजय सहाब

बिखरा हूँ जब मैं ख़ुद यहाँ कोई मुझे गिराए क्यूँ

अजय सहाब

फूलों में वो ख़ुशबू वो सबाहत नहीं आई

ऐतबार साजिद

न छोड़ी ग़म ने मिरे इक जिगर में ख़ून की बूँद

ऐश देहलवी

जुरअत ऐ दिल मय ओ मीना है वो ख़ुद-काम भी है

ऐश देहलवी

जो होता आह तिरी आह-ए-बे-असर में असर

ऐश देहलवी

ख़ाकसारी थी कि बिन देखे ही हम ख़ाक हुए

ऐन ताबिश

काट गई कोहरे की चादर सर्द हवा की तेज़ी माप

अहसन शफ़ीक़

नज़्ज़ारा जो होता है लब-ए-बाम तुम्हारा

अहसन मारहरवी

ज़रुरत-ए-इत्तिहाद

अहमक़ फफूँदवी

इल्म की ज़रूरत

अहमक़ फफूँदवी

एहसास की मंज़िल से गुज़र जाएगा आख़िर

अहमद ज़िया

क्यूँ तीरगी से इस क़दर मानूस हूँ 'ज़फ़र'

अहमद ज़फ़र

डेड-हाऊस

अहमद ज़फ़र

तरस रहा हूँ क़रार-ए-दिल-ओ-नज़र के लिए

अहमद ज़फ़र

जब तक जुनूँ जुनूँ है ग़म-ए-आगही भी है

अहमद ज़फ़र

वो मर गया सदा-ए-नौहा-गर में कितनी देर है

अहमद शहरयार

ये दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल कहाँ कही जाए

अहमद राही

तवील रातों की ख़ामुशी में मिरी फ़ुग़ाँ थक के सो गई है

अहमद राही

तवील रातों की ख़ामुशी में मिरी फ़ुग़ाँ थक के सो गई है

अहमद राही

जिन्हें रास आ गए हैं ये सहर-नुमा अँधेरे

अहमद राही

क़ानून-ए-क़ुदरत

अहमद नदीम क़ासमी

क़लम दिल में डुबोया जा रहा है

अहमद नदीम क़ासमी

मुदावा हब्स का होने लगा आहिस्ता आहिस्ता

अहमद नदीम क़ासमी

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