सहर Poetry (page 41)

कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा

अहमद नदीम क़ासमी

जी चाहता है फ़लक पे जाऊँ

अहमद नदीम क़ासमी

होता नहीं ज़ौक़-ए-ज़िंदगी कम

अहमद नदीम क़ासमी

मुझे उस ने तिरी ख़बर दी है

अहमद मुश्ताक़

खड़े हैं दिल में जो बर्ग-ओ-समर लगाए हुए

अहमद मुश्ताक़

कहूँ किस से रात का माजरा नए मंज़रों पे निगाह थी

अहमद मुश्ताक़

इक उम्र की और ज़रूरत है वही शाम-ओ-सहर करने के लिए

अहमद मुश्ताक़

अश्क दामन में भरे ख़्वाब कमर पर रक्खा

अहमद मुश्ताक़

सवाद-ए-शाम न रंग-ए-सहर को देखते हैं

अहमद महफ़ूज़

फेंकते संग-ए-सदा दरिया-ए-वीरानी में हम

अहमद महफ़ूज़

दिल-ए-बेताब के हमराह सफ़र में रहना

अहमद जावेद

क्या रोज़-ए-हश्र दूँ तुझे ऐ दाद-गर जवाब

अहमद हुसैन माइल

जुम्बिश में ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन एक इस तरफ़ एक उस तरफ़

अहमद हुसैन माइल

हो गए मुज़्तर देखते ही वो हिलती ज़ुल्फ़ें फिरती नज़र हम

अहमद हुसैन माइल

उधर की शय इधर कर दी गई है

अहमद हमेश

किस को मालूम है क्या होगा नज़र से पहले

अहमद हमेश

अभी तो जाग रहे हैं चराग़ राहों के

अहमद फ़राज़

ये शहर सेहर-ज़दा है सदा किसी की नहीं

अहमद फ़राज़

रात के पिछले पहर रोने के आदी रोए

अहमद फ़राज़

नौहागरों में दीदा-ए-तर भी उसी का था

अहमद फ़राज़

कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो

अहमद फ़राज़

अब सोचिए तो दाम-ए-तमन्ना में आ गए

अहमद अज़ीम

ऐ शब-ए-ग़म मिरे मुक़द्दर की

आग़ाज़ बरनी

वो नज़र मेहरबाँ अगर होती

आग़ाज़ बरनी

अब अगर इश्क़ के आसार नहीं बदलेंगे

आग़ाज़ बरनी

तिरी हवस में जो दिल से पूछा निकल के घर से किधर को चलिए

आग़ा हज्जू शरफ़

रुलवा के मुझ को यार गुनहगार कर नहीं

आग़ा हज्जू शरफ़

नाहक़ ओ हक़ का उन्हें ख़ौफ़-ओ-ख़तर कुछ भी नहीं

आग़ा हज्जू शरफ़

जवानी आई मुराद पर जब उमंग जाती रही बशर की

आग़ा हज्जू शरफ़

इलाही ख़ैर जो शर वाँ नहीं तो याँ भी नहीं

आग़ा हज्जू शरफ़

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