रात Poetry (page 48)

कातिक का चाँद

इब्न-ए-इंशा

चाँद के तमन्नाई

इब्न-ए-इंशा

लोग हिलाल-ए-शाम से बढ़ कर पल में माह-ए-तमाम हुए

इब्न-ए-इंशा

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा

इब्न-ए-इंशा

जल्वा-नुमाई बे-परवाई हाँ यही रीत जहाँ की है

इब्न-ए-इंशा

फिर तिरा शहर तिरी राहगुज़र हो कि न हो

हुसैन ताज रिज़वी

दिल को तौफ़ीक़-ए-ज़ियाँ हो तो ग़ज़ल होती है

हुरमतुल इकराम

दिल को ग़म रास है यूँ गुल को सबा हो जैसे

होश तिर्मिज़ी

देखे हैं जो ग़म दिल से भुलाए नहीं जाते

होश तिर्मिज़ी

उन के सब झूट मो'तबर ठहरे

हिना हैदर

हरीफ़-ए-विसाल

हिमायत अली शाएर

दूसरा तजरबा

हिमायत अली शाएर

अन-कही

हिमायत अली शाएर

रात सुनसान दश्त ओ दर ख़ामोश

हिमायत अली शाएर

नाला-ए-ग़म शो'ला-असर चाहिए

हिमायत अली शाएर

मैं जो कुछ सोचता हूँ अब तुम्हें भी सोचना होगा

हिमायत अली शाएर

इस दश्त-ए-सुख़न में कोई क्या फूल खिलाए

हिमायत अली शाएर

चाँद ने आज जब इक नाम लिया आख़िर-ए-शब

हिमायत अली शाएर

आज की शब जैसे भी हो मुमकिन जागते रहना

हिमायत अली शाएर

आए थे तेरे शहर में कितनी लगन से हम

हिमायत अली शाएर

तुम भी निगाह में हो अदू भी नज़र में है

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

मिरे शाने पे रहने दो अभी गेसू ज़रा ठहरो

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

क्या बात है नज़रों से अंधेरा नहीं जाता

हीरा लाल फ़लक देहलवी

मिरे कलाम में पेचीदा इस्तिआ'रा नहीं

हज़ीं लुधियानवी

आँसू को अपने दीदा-ए-तर से निकालना

हज़ीं लुधियानवी

सूने सूने उजड़े उजड़े से घरों में ले चलो

हयात लखनवी

मैं ख़ाल-ओ-ख़द का सरापा तसव्वुरात में था

हयात लखनवी

महक किरदार की आती रही है

हयात लखनवी

न होती हाल-ए-दिल कहने की गर हिम्मत तो अच्छा था

हया लखनवी

रातों को बुत बग़ल में हैं क़ुरआँ तमाम दिन

हातिम अली मेहर

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