रात Poetry (page 47)
क्या जाने किस की धुन में रहा दिल-फ़िगार चाँद
इकराम जनजुआ
यूँ है तिरी तलाश पे अब तक यक़ीं मुझे
इफ़्तिख़ार नसीम
तेरी आँखों की चमक बस और इक पल है अभी
इफ़्तिख़ार नसीम
सज़ा ही दी है दुआओं में भी असर दे कर
इफ़्तिख़ार नसीम
किसी के हक़ में सही फ़ैसला हुआ तो है
इफ़्तिख़ार नसीम
ख़ुद को हुजूम-ए-दहर में खोना पड़ा मुझे
इफ़्तिख़ार नसीम
जिला-वतन हूँ मिरा घर पुकारता है मुझे
इफ़्तिख़ार नसीम
हाथ लहराता रहा वो बैठ कर खिड़की के साथ
इफ़्तिख़ार नसीम
वो ख़्वाब था बिखर गया ख़याल था मिला नहीं
इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी
सिपाह-ए-शाम के नेज़े पे आफ़्ताब का सर
इफ़्तिख़ार आरिफ़
एक उदास शाम के नाम
इफ़्तिख़ार आरिफ़
सब चेहरों पर एक ही रंग और सब आँखों में एक ही ख़्वाब
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ख़्वाब-ए-देरीना से रुख़्सत का सबब पूछते हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ख़ल्क़ ने इक मंज़र नहीं देखा बहुत दिनों से
इफ़्तिख़ार आरिफ़
जुनूँ का रंग भी हो शोला-ए-नुमू का भी हो
इफ़्तिख़ार आरिफ़
हम अहल-ए-जब्र के नाम-ओ-नसब से वाक़िफ़ हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
हरीम-ए-लफ़्ज़ में किस दर्जा बे-अदब निकला
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़म-ए-जहाँ को शर्मसार करने वाले क्या हुए
इफ़्तिख़ार आरिफ़
रह-ए-जुस्तुजू में भटक गए तो किसी से कोई गिला नहीं
इफ़्फ़त अब्बास
ख़ूँ में तर सब्र की चादर कहाँ ले जाओगे
इफ़्फ़त अब्बास
मतला ग़ज़ल का ग़ैर ज़रूरी क्या क्यूँ कब का हिस्सा है
इदरीस बाबर
ख़ेमगी-ए-शब है तिश्नगी दिन है
इदरीस बाबर
करते फिरते हैं ग़ज़ालाँ तिरा चर्चा साहब
इदरीस बाबर
ज़ेहन से दिल का बार उतरा है
इब्न-ए-सफ़ी
छलकती आए कि अपनी तलब से भी कम आए
इब्न-ए-सफ़ी
शौक़ जब भी बंदगी का रहनुमा होता नहीं
इब्न-ए-मुफ़्ती
फिर से वो लौट कर नहीं आया
इब्न-ए-मुफ़्ती
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ये सराए है
इब्न-ए-इंशा
लब पर नाम किसी का भी हो
इब्न-ए-इंशा
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