रात Poetry (page 49)

बे-क़रारी रोज़-ओ-शब करने लगा

हातिम अली मेहर

ज़िक्र-ए-जानाँ कर जो तुझ से हो सके

हातिम अली मेहर

क़त्अ हो कर काकुल-ए-शब-गीर आधी रह गई

हातिम अली मेहर

पुतली की एवज़ हूँ बुत-ए-राना-ए-बनारस

हातिम अली मेहर

पूछेगा जो वो रश्क-ए-क़मर हाल हमारा

हातिम अली मेहर

खुल गया उन की मसीहाई का आलम शब-ए-वस्ल

हातिम अली मेहर

करें क्या हवस करें क्या हवस करें क्या हवस करें क्या हवस

हातिम अली मेहर

गुल-बाँग थी गुलों की हमारा तराना था

हातिम अली मेहर

दोपहर रात आ चुकी हीला-बहाना हो चुका

हातिम अली मेहर

चैन पहलू में उसे सुब्ह नहीं शाम नहीं

हातिम अली मेहर

रविश-ए-हुस्न-ए-मुराआत चली जाती है

हसरत मोहानी

पैहम दिया प्याला-ए-मय बरमला दिया

हसरत मोहानी

कैसे छुपाऊँ राज़-ए-ग़म दीदा-ए-तर को क्या करूँ

हसरत मोहानी

हर हाल में रहा जो तिरा आसरा मुझे

हसरत मोहानी

हाइल थी बीच में जो रज़ाई तमाम शब

हसरत मोहानी

दिल में क्या क्या हवस-ए-दीद बढ़ाई न गई

हसरत मोहानी

दीदनी हैं दिल-ए-ख़राब के रंग

हसरत मोहानी

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है

हसरत मोहानी

बदल-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार कहाँ से लाऊँ

हसरत मोहानी

बाम पर आने लगे वो सामना होने लगा

हसरत मोहानी

जब प्यार नहीं है तो भुला क्यूँ नहीं देते

हसरत जयपुरी

यार इब्तिदा-ए-इश्क़ से बे-ज़ार ही रहा

हसरत अज़ीमाबादी

साक़ी हैं रोज़-ए-नौ-बहार यक दो सह चार पंज ओ शश

हसरत अज़ीमाबादी

मेरी उस प्यारी झब से आँख लगी

हसरत अज़ीमाबादी

क्या कहूँ तुझ से मिरी जान मैं शब का अहवाल

हसरत अज़ीमाबादी

कटती है शब विसाल की पलकें झपकते ही

हसनैन आक़िब

खोए हुए पलों की कोई बात भी तो हो

हसनैन आक़िब

उम्र सारी यूँही गुज़ारी है

हसन रिज़वी

पहले सी अब बात कहाँ है

हसन रिज़वी

शाख़ से फूल को फिर जुदा कर दिया

हसन निज़ामी

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