रात Poetry (page 95)

क़िस्से से तिरे मेरी कहानी से ज़ियादा

अबरार अहमद

कहीं पर सुब्ह रखता हूँ कहीं पर शाम रखता हूँ

अबरार अहमद

हज़ार ता'ने सुनेगा ख़जिल नहीं होगा

आबिद मलिक

मिरा बदन है मगर मुझ से अजनबी है अभी

आबिद आलमी

जो अपने आप को सब कुछ समझ ले

आबिद अख़्तर

कभी कभी तो ये वहशत भी हम पे गुज़री है

अभिषेक शुक्ला

सुर्ख़ सहर से है तो बस इतना सा गिला हम लोगों का

अभिषेक शुक्ला

हम ऐसे सोए भी कब थे हमें जगा लाते

अभिषेक शुक्ला

दर-ए-ख़याल भी खोलें सियाह शब भी करें

अभिषेक शुक्ला

अभी तो आप ही हाइल है रास्ता शब का

अभिषेक शुक्ला

अगर वो बे-अदब है बे-अदब लिख

अब्दुस्समद ’तपिश’

दिल में लिए औहाम को इस घर से उठा मैं

अब्दुर्राहमान वासिफ़

वो अजनबी तिरी बाँहों में जो रहा शब भर

अब्दुर्रहीम नश्तर

वो शख़्स जिस ने ख़ुद अपना लहू पिया होगा

अब्दुर्रहीम नश्तर

रूठे हैं हम से दोस्त हमारे कहाँ कहाँ

अब्दुल्लतीफ़ शौक़

क़दम क़दम पे नया इम्तिहाँ है मेरे लिए

अब्दुल्लाह कमाल

नंगे पाँव की आहट थी या नर्म हवा का झोंका था

अब्दुल्लाह जावेद

जो गुज़रता है गुज़र जाए जी

अब्दुल्लाह जावेद

जानिब-ए-दर देखना अच्छा नहीं

अब्दुल्लाह जावेद

तेरा ही मैं गदा हूँ मेरा तू शाह बस है

अब्दुल वहाब यकरू

मुझे एहसास ये पल पल रहा है

अब्दुल वहाब सुख़न

हमें नसीब कोई दीदा-वर नहीं होता

अब्दुल वहाब सुख़न

कहाँ थे शब इधर देखो हया क्यूँ है निगाहों में

अब्दुल रहमान रासिख़

नीम-चा जल्द म्याँ ही न मियाँ कीजिएगा

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

मरते दम नाम तिरा लब के जो आ जाए क़रीब

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

ग़ैर के दिल पे तू ऐ यार ये क्या बाँधे है

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

मैं शब-ए-हिज्र क्या करूँ तन्हा

अब्दुल मतीन नियाज़

हम-नफ़स ख़्वाब-ए-जुनूँ की कोई ता'बीर न देख

अब्दुल मतीन नियाज़

वक़्त अब सर पे वो आया है कि सर याद नहीं

अब्दुल मलिक सोज़

हम-नफ़सो उजड़ गईं मेहर-ओ-वफ़ा की बस्तियाँ

अब्दुल मजीद सालिक

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