रात Poetry (page 93)

बहुत न हौसला-ए-इज़्ज़-ओ-जाह मुझ से हुआ

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

कर भी लूँ अगर ख़्वाब की ताबीर कोई और

अफ़ज़ाल फ़िरदौस

दरीचे में सितारा जागता है

अफ़ज़ाल फ़िरदौस

सभी हैं अपने मगर अजनबी से लगते हैं

आफ़ताब शम्सी

तलाश-ए-क़ाफ़िया में उम्र सब गुज़ारी है

आफ़ताब शम्सी

कल का वादा न करो दिल मिरा बेकल न करो

आफ़ताब शाह आलम सानी

हिज्र-ज़ाद

आफ़ताब इक़बाल शमीम

वो इत्र-ए-ख़ाक अब कहाँ पानी की बास में

आफ़ताब इक़बाल शमीम

वो आसमाँ के दरख़शिंदा राहियोँ जैसा

आफ़ताब इक़बाल शमीम

फिर बपा शहर में अफ़रातफ़री कर जाए

आफ़ताब इक़बाल शमीम

पंजों के बल खड़े हुए शब की चटान पर

आफ़ताब इक़बाल शमीम

नस्लें जो अँधेरे के महाज़ों पे लड़ी हैं

आफ़ताब इक़बाल शमीम

कहीं सोता न रह जाऊँ सदा दे कर जगाओ ना

आफ़ताब इक़बाल शमीम

दिखाई जाएगी शहर-ए-शब में सहर की तमसील चल के देखें

आफ़ताब इक़बाल शमीम

वो सर से पाँव तक है ग़ज़ब से भरा हुआ

आफ़ताब हुसैन

शब-ए-सियाह पे वा रौशनी का बाब तो हो

आफ़ताब हुसैन

यास है हसरत है ग़म है और शब-ए-दीजूर है

अफ़सर मेरठी

परेशानी है जी घबरा रहा है

अफ़सर मेरठी

जिन को हर हालत में ख़ुश और शादमाँ पाता हूँ मैं

अफ़सर मेरठी

आग़ाज़ हुआ है उल्फ़त का अब देखिए क्या क्या होना है

अफ़सर मेरठी

ग़म-ए-हयात के पेश-ओ-अक़ब नहीं पढ़ता

अफ़सर माहपुरी

यूँ ख़बर किसे थी मेरी तिरी मुख़बिरी से पहले

अफ़रोज़ आलम

हिसार-ए-दीद में रोईदगी मालूम होती है

अफ़रोज़ आलम

गुज़रे लम्हात का एहसास हुआ जाता है

अफ़रोज़ आलम

उस ने क्यूँ सब से जुदा मेरी पज़ीराई की

अफ़ीफ़ सिराज

हम्माम के आईने में शब डूब रही थी

आदिल मंसूरी

वक़्त की रेत पे

आदिल मंसूरी

सियाह सायों की तिश्नगी में

आदिल मंसूरी

हश्र की सुब्ह दरख़्शाँ हो मक़ाम-ए-महमूद

आदिल मंसूरी

वो बरसात की शब वो पिछ्ला पहर

आदिल मंसूरी

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