रात Poetry (page 92)

दस्तक हवा की सुन के कभी डर नहीं गया

अहमद अज़ीम

ऐसी भी कहाँ बे-सर-ओ-सामानी हुई है

अहमद अज़ीम

अब सोचिए तो दाम-ए-तमन्ना में आ गए

अहमद अज़ीम

अजब ठहराव पैदा हो रहा है रोज़ ओ शब में

अहमद अशफ़ाक़

ज़मीं वालों की बस्ती में सुकूनत चाहती है

अहमद अशफ़ाक़

ऐ शब-ए-ग़म मिरे मुक़द्दर की

आग़ाज़ बरनी

वो नज़र मेहरबाँ अगर होती

आग़ाज़ बरनी

अब अगर इश्क़ के आसार नहीं बदलेंगे

आग़ाज़ बरनी

गर एक शब भी वस्ल की लज़्ज़त न पाए दिल

आग़ा मोहम्मद तक़ी

चोरी कहीं खुले न नसीम-ए-बहार की

आग़ा हश्र काश्मीरी

तिरी हवस में जो दिल से पूछा निकल के घर से किधर को चलिए

आग़ा हज्जू शरफ़

तिरी गली में जो धूनी रमाए बैठे हैं

आग़ा हज्जू शरफ़

रुलवा के मुझ को यार गुनहगार कर नहीं

आग़ा हज्जू शरफ़

नाहक़ ओ हक़ का उन्हें ख़ौफ़-ओ-ख़तर कुछ भी नहीं

आग़ा हज्जू शरफ़

किस के हाथों बिक गया किस के ख़रीदारों में हूँ

आग़ा हज्जू शरफ़

जवानी आई मुराद पर जब उमंग जाती रही बशर की

आग़ा हज्जू शरफ़

हम हैं ऐ यार चढ़ाए हुए पैमाना-ए-इश्क़

आग़ा हज्जू शरफ़

हवस गुलज़ार की मिस्ल-ए-अनादिल हम भी रखते थे

आग़ा हज्जू शरफ़

घिसते घिसते पाँव में ज़ंजीर आधी रह गई

आग़ा हज्जू शरफ़

फ़स्ल-ए-गुल में है इरादा सू-ए-सहरा अपना

आग़ा हज्जू शरफ़

दिल को अफ़सोस-ए-जवानी है जवानी अब कहाँ

आग़ा हज्जू शरफ़

पेश आने लगे हैं नफ़रत से

अफ़ज़ल पेशावरी

ख़ुश-क़िस्मत हैं वो जो गाँव में लम्बी तान के सोते हैं

अफ़ज़ल परवेज़

जंग से जंगल बना जंगल से मैं निकला नहीं

अफ़ज़ाल नवेद

इक धन को एक धन से अलग कर लूँ और गाऊँ

अफ़ज़ाल नवेद

धनक में सर थे तिरी शाल के चुराए हुए

अफ़ज़ाल नवेद

आँचल में नज़र आती हैं कुछ और सी आँखें

अफ़ज़ाल नवेद

मिटते हुए नुक़ूश-ए-वफ़ा को उभारिए

अफ़ज़ल मिनहास

ज़मीं से आगे भला जाना था कहाँ मैं ने

अफ़ज़ल गौहर राव

सितम की तेग़ पे ये दस्त-ए-बे-नियाम रक्खा

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

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