रात Poetry (page 91)

मेहवर

अहमद हमेश

नहीं मिलते वो अब तो क्या बात है

अहमद हमदानी

ज़ख़्म गिनता हूँ शब-ए-हिज्र में और सोचता हूँ

अहमद फ़रीद

जब से इक चाँद की चाहत में सितारा हुआ हूँ

अहमद फ़रीद

तू इतनी दिल-ज़दा तो न थी ऐ शब-ए-फ़िराक़

अहमद फ़राज़

सामने उम्र पड़ी है शब-ए-तन्हाई की

अहमद फ़राज़

न शब ओ रोज़ ही बदले हैं न हाल अच्छा है

अहमद फ़राज़

ब-ज़ाहिर एक ही शब है फ़िराक़-ए-यार मगर

अहमद फ़राज़

मुझ से पहले

अहमद फ़राज़

मुहासरा

अहमद फ़राज़

मयूरका

अहमद फ़राज़

कनीज़

अहमद फ़राज़

उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया

अहमद फ़राज़

उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ

अहमद फ़राज़

उस मंज़र-ए-सादा में कई जाल बंधे थे

अहमद फ़राज़

था अबस तर्क-ए-तअल्लुक़ का इरादा यूँ भी

अहमद फ़राज़

सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते जाते

अहमद फ़राज़

साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले

अहमद फ़राज़

नज़र बुझी तो करिश्मे भी रोज़-ओ-शब के गए

अहमद फ़राज़

न हरीफ़-ए-जाँ न शरीक-ए-ग़म शब-ए-इंतिज़ार कोई तो हो

अहमद फ़राज़

ख़ुद को तिरे मेआर से घट कर नहीं देखा

अहमद फ़राज़

कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो

अहमद फ़राज़

जिस्म शो'ला है जभी जामा-ए-सादा पहना

अहमद फ़राज़

जब यार ने रख़्त-ए-सफ़र बाँधा कब ज़ब्त का पारा उस दिन था

अहमद फ़राज़

हर एक बात न क्यूँ ज़हर सी हमारी लगे

अहमद फ़राज़

फ़क़ीह-ए-शहर की मज्लिस से कुछ भला न हुआ

अहमद फ़राज़

दिल मुनाफ़िक़ था शब-ए-हिज्र में सोया कैसा

अहमद फ़राज़

अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम

अहमद फ़राज़

इसी लिए तो हार का हुआ नहीं मलाल तक

अहमद अज़ीम

इश्क़ में हो के मुब्तिला दिल ने कमाल कर दिया

अहमद अज़ीम

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