सभी हैं अपने मगर अजनबी से लगते हैं
ये ज़िंदगी है कि होटल में शब गुज़ारी है
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Habib Jalib
Rahat Indori
Jaun Eliya
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Gulzar
Parveen Shakir
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शिकस्त
नाम अपना ही मैं सब से खड़ा पूछ रहा था
धूप
जो साथ लाए थे घर से वो खो गया है कहीं
तज़ाद
जो दिल में है वही बाहर दिखाई देता है
पहली तारीख़
नर्स
आख़िरी सफ़र
यादें
तूफ़ान की ज़द में थे ख़यालों के सफ़ीने
मैं जंगलों में दरिंदों के साथ रहता रहा