नाम अपना ही मैं सब से खड़ा पूछ रहा था
कुछ मेरी समझ में नहीं आया कि ये क्या था
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तलाश-ए-क़ाफ़िया में उम्र सब गुज़ारी है
मुदावा
तज़ाद
मैं जंगलों में दरिंदों के साथ रहता रहा
कोई अच्छी सी ग़ज़ल कानों में मेरे घोल दे
वापसी
सभी बिछड़ गए मुझ से गुज़रते पल की तरह
जू-ए-रवाँ हूँ ठहरा समुंदर नहीं हूँ मैं
जो दिल में है वही बाहर दिखाई देता है
असीर-ए-जिस्म हूँ दरवाज़ा तोड़ डाले कोई
यादें