जो साथ लाए थे घर से वो खो गया है कहीं
इरादा वर्ना हमारा भी वापसी का था
Anwar Masood
Gulzar
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Wasi Shah
Habib Jalib
Jaun Eliya
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(719) Peoples Rate This
देख कर उस को लगा जैसे कहीं हो देखा
आज़ुर्दगी का उस की ज़रा मुझ को पास था
सभी बिछड़ गए मुझ से गुज़रते पल की तरह
शिकस्त
धूप
जो दिल में है वही बाहर दिखाई देता है
तलाश-ए-क़ाफ़िया में उम्र सब गुज़ारी है
देर तक रात अँधेरे में जो मैं ने देखा
पयाम-ए-आश्ती इक ढोंग दोस्ती का था
मैं जंगलों में दरिंदों के साथ रहता रहा
नाम अपना ही मैं सब से खड़ा पूछ रहा था
तूफ़ान की ज़द में थे ख़यालों के सफ़ीने