व्यक्ति Poetry (page 17)

तिरे सुलूक का ग़म सुब्ह-ओ-शाम क्या करते

रईस सिद्दीक़ी

अपने हालात से मैं सुल्ह तो कर लूँ लेकिन

रईस फ़रोग़

आज की रात

रईस फ़रोग़

सड़कों पे घूमने को निकलते हैं शाम से

रईस फ़रोग़

हमा-वक़्त जो मिरे साथ हैं ये उभरते डूबते साए से

रईस फ़रोग़

शिकवा करने से कोई शख़्स ख़फ़ा होता है

रईस अमरोहवी

मैं जो तन्हा रह-ए-तलब में चला

रईस अमरोहवी

कल रात कई ख़्वाब-ए-परेशाँ नज़र आए

रईस अमरोहवी

हम ने ऐ दोस्त रिफ़ाक़त से भला क्या पाया

रईस अमरोहवी

अपने को तलाश कर रहा हूँ

रईस अमरोहवी

क्या क्या गुमाँ न थे मुझे अपनी उड़ान पर

रहमान ख़ावर

लोग यक-रंगी-ए-वहशत से भी उकताए हैं

राही मासूम रज़ा

एहसास-ए-ज़िम्मेदारी बेदार हो रहा है

राही फ़िदाई

रुख़-ए-रौशन का रौशन एक पहलू भी नहीं निकला

इक़बाल साजिद

ख़ुश्क उस की ज़ात का सातों समुंदर हो गया

इक़बाल साजिद

अजब सदा ये नुमाइश में कल सुनाई दी

इक़बाल साजिद

अस्बाब यही है यही सामान हमारा

इक़बाल पयाम

जब वो लब-ए-नाज़ुक से कुछ इरशाद करेंगे

इक़बाल मतीन

शोर से बच कर सहमा सहमा बैठा है चुप-चाप

इंतिख़ाब सय्यद

हर एक शख़्स के विज्दान से ख़िताब करे

इंतिख़ाब सय्यद

वो जो शख़्स अपने ही ताड़ में सो छुपा है दिल ही की आड़ में

इंशा अल्लाह ख़ान

तोडूँगा ख़ुम-ए-बादा-ए-अंगूर की गर्दन

इंशा अल्लाह ख़ान

लब पे आई हुई ये जान फिरे

इंशा अल्लाह ख़ान

गली से तेरी जो टुक हो के आदमी निकले

इंशा अल्लाह ख़ान

अमरद हुए हैं तेरे ख़रीदार चार पाँच

इंशा अल्लाह ख़ान

अच्छा जो ख़फ़ा हम से हो तुम ऐ सनम अच्छा

इंशा अल्लाह ख़ान

वो अजीब शख़्स था भीड़ में जो नज़र में ऐसे उतर गया

इन्दिरा वर्मा

वो एक शख़्स कि बाइस मिरे ज़वाल का था

इनाम-उल-हक़ जावेद

उधर जो शख़्स भी आया उसे जवाब हुआ

इनाम कबीर

हर सम्त से उठता है धुआँ शहर के लोगो

इनाम हनफ़ी

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